बुधवार, 24 अगस्त 2011

जिहादी हमला!!! सब ख़तम......



आतंकवादी  हमलो पर लिखी कविता....(इस कविता को सुनते सुनते जाने कितने लोग रो पड़े.) दिल से महसूस करते हुए पढ़े...



इंसान को हैवान बना देते है लोग,
हद्द हर नीचता की जता देते है लोग
और जिन बच्चो को, अभी खबर ना थी, अपने नाम की यारो,
उन्हे जिहाद क्या होता है, सिखा  देते है लोग......


रास्ता ए लहू अपना लेते है लोग,
लहू सस्ता हो जैसे नीर से, ऐसे बहा देते है लोग,
मिली क्या ख़ुशी उन्हे, देख कर लाशें,
क्यू अमनो-चैन जिंदा, दफ़ना देते है लोग


ये भाई ना रहा, ये बाप ना रहा
उसके सर पर उसकी माँ का, अब हाथ ना रहा
तन्हा जो घूमता था, चौराहो पर कभी
अब तन्हाई का भी उसकी, कोई साथ ना रहा
चल रहा था जो अभी, खुशी खुशी यहा
क्यू बेजान उस इंसान को, बना देते है लोग.....


सज-धज के चल रही थी, जिसकी दुल्हन अभी,
पढ़ रहा था मुन्ना, ए,बी,सी,डी यही
गया था बाजार लेने, भाई सब्जियाँ
गूंद रही थी मा उसकी, आटा यही कही
चहकती बुल बुल,,,कोयल,,,उड़ते थे परिंदे..जहा
क्यू वीरान उस स्थान को बना देते है..
क्यू वीरान उस स्थान को बना देते है..


और जिन बच्चो को, अभी खबर ना थी, अपने नाम की यारो,
उन्हे जिहाद क्या होता है सिखा  देते है लोग
उन्हे जिहाद क्या होता है सिखा  देते है लोग....


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना" 




शनिवार, 13 अगस्त 2011

सोच की शक्ति ....



ये कविता आपको नकारात्मक सोच से सकरात्मक सोच तक ले जाएगी.....बस महसूस कीजिये एक एक पंक्ति को और फिर पढ़िए


नकारात्मक सोच: (महसूस करे)
मैं आवारा पाती सा
बिन दीये जैसी बाती सा.
पीट पीट जो रोती रहती,
मैं बूढ़ी मा की छाती सा......


मैं जर्जर एक कश्ती  सा,
उजड़ी वीरा बस्ती सा
नाज़ुक सी पगडंडी सा मैं
जग जेल मे बंदी सा.....




सकरात्मक सोच::(महसूस कीजिए)
खुशहाली की पाती सा
रोशन करती बाती सा
लाल देख जो फूली रहती
उस बूढ़ी मा की छाती सा......


पार लगाती कश्ती   सा
दीवानो की बस्ती सा
हरीभरी पगडंडी सा
प्यार जेल मे बंदी सा......


मैं आशा की परिभाषा हू
कल कल बहती नदियो सा
खुशी बाटते एक मनुष सा
मनललचाते इंद्रधनुष सा.....


देखा  आपने??महसूस किया?  सही  सोच का  मन  पर  प्रभाव  :
बस अपने जीवन मे सही सोच रखिए रास्ते अपने आप मिलेंगे..

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"



शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

जिस दिन मेरी कलम बिकेगी........



सागर होती होगी दुनिया, एक पल में तर जाउंगा
ठान लिया  है  मन  में जो  कुछ,  मर कर  भी  कर  जाऊँगा
वादा मेरा इस दुनिया से, इस जग में जीने वालो से,
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, मै उस दिन मर जाऊँगा..... 

ना समझौता ना सुनवाई,  ना काफिर  की  तारीखे
कलम उठा कर शस्त्र बना कर, सीधा ही लड़ जाऊँगा..
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, मै उस दिन मर जाऊँगा...../.

मेरी शिक्षा मेरा धन है,जीवन है जो सब अर्पण है
खौले खून तो जेठ महीना, बहते आसू वो सावन है
परछाई में रहने वालो,मुझको पागल कहने वालो
कलम बना के अपनी मलहम, सब पीड़ा हर जाऊँगा
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, मै उस दिन मर जाऊँगा 
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, मै उस दिन मर जाऊँगा 


प्रभात  कुमार भारद्ववाज"परवाना"



गुरुवार, 11 अगस्त 2011

आज महकता है मन मेरा...


आज खो गया हूँ मै रेत-पानी की तरह
पर महकता है मन मेरा रात-रानी की तरह


नासमझ है की मोल लगाती है वो
मुझे तोलती है लाभ हानि की तरह 


मार दो मुझे या दफ़न कर दो...
भूल ना जाना मुझे एक कहानी की तरह..


हाथ मलते रह जाओगे एक दिन दोस्तो
और फिसल जाउंगा मैं वक़्त और जवानी की तरह


प्रभात को फर्क नहीं किसी भी रात से
आज महकता है मन मेरा रात-रानी की तरह


प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना" 



गुरुवार, 4 अगस्त 2011

कागजी कस्ती....

आज कलम फिर बरसी है बादलो की तरह,
पढने वाले पढ़ रहे है पागलो की तरह,
मै तैयार हू मिट  जाने को परवाना बनकर,
और वो तैयार है दीपक में लौ की तरह....

मिले थे कई गैर, मैं मिल लिया गले,
और फिर बिछड गए वो रास्तो की तरह

विश्वास तोडा दुनिया मगर हम भी है सनम
हिफाजत में तेरे घर के जालो की तरह

फूल दे रहे हो मंशा साफ़ कह देना
चुभ ना जाना शूल बन कहीं भालो की तरह

धुआ जो उठ रहा है ये आसमान में,
जल रहा है दिल मेरा एक बस्ती की तरह

समंदर की सैर पर निकल दिया"प्रभात"
फर्क क्या कहे कोई कागजी कस्ती की तरह 

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"