सोमवार, 23 सितंबर 2013

भूल जाता है .....


जन्नत-ओं-जहानुम्म में अंतर, भूल जाता है,
नशे में इंसा, पीर पैगंबर भूल जाता है.…

बुलंदियों पर चढ़ते ही, कतरा आजकल,
मीलो गहरा है समंदर, भूल जाता है.…

ज़रा वाहवाही, क्या मिली ज़माने से,
मदारी के हाथो में है बन्दर, भूल जाता है.…

उम्र भर समेटता है, दौलत बेवजह
खाली हाथ गया था सिकंदर, भूल जाता है.…


        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com 


गुरुवार, 12 सितंबर 2013

अश्क जो माँ बाप की आँखों में गए ...


बारिश में जैसे जलता दीया ऐसे  जला  हूँ,
हर वक़्त, हर हालात, कसौटी पे खरा हूँ,
ये आंधियाँ रोकेंगी क्या अब मेरा रास्ता 
बुजुर्गों की दुआओ को घर से लेके चला हूँ,

मिट्टी है कि तुम, पूरी दुनिया में छा गए,
तो क्या हुआ जो, हर किसी के दिल को भा गए 
धर्म, पुन्य, तीर्थ सारे व्यर्थ हो गए 
अश्क जो माँ बाप की,आँखों में गए 

        कवि प्रभात "परवाना"
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