सोमवार, 8 जुलाई 2013

एहसान लेना गवारा नहीं लगता.....


बच्चो के भूखे पेट को, पहचान लेता है,
पिता एक रोटी हिस्सों में, बाँट देता है,
माँ बीमार, चून ख़तम, लकडियाँ गीली,
आज फिर नहीं जलूँगा, चूल्हा भांप लेता है .....


एहसान लेना ज़मीर को, गवारा नहीं लगता
मुफलिस एक चादर में, सर्द राते काट लेता है .....

चुल्लू भर पानी में, वो शख्स, डूब मर जाए,
अपने काम की खातिर, जो तलवे चाट लेता है .....

बुरे वक़्त से कहाँ तक, बच सकोगे आप,
आदमी ऊंट पर बैठा हो, कुत्ता काट लेता है .....



        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com

राजस्थान के मदर टेरेसा कालेज में कार्यक्रम....


मित्रो कुछ समय पहले राजस्थान के मदर टेरेसा कालेज में एक कार्यक्रम के आयोजन पर प्रस्तुति करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ,
कार्यक्रम पूरी तरह सफल रहा , वहाँ के बच्चो ने कार्यक्रम को सफल बनाने में पूरा साथ दिया,
बहुत से मित्रो ने कार्यक्रम की विडियो देखने की इच्छा जाहिर की थी ,
साथियो पूरी विडियो तो नहीं मिल पायी परन्तु काव्य पाठ करते हुए एक अंश जरूर मिला है,

आप सभी का प्यार बना रहे तो जल्द ही आपके शहर में भी एक कार्यक्रम का आयोजन होगा,
अगर आप किसी भी प्रकार का सुझाव या प्रतिक्रिया देना चाहते है तो बेहिचक
theprabhatparwana@gmail.com
पर मेल करे,

और हाँ विडिओ देखना ना भूले : http://www.youtube.com/watch?v=FyVSu_cZmbU





        कवि प्रभात "परवाना"
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मंगलवार, 2 जुलाई 2013

श्यामलाल कॉलेज में हास्य कार्यक्रम ....


मित्रो आपके स्नेह और प्यार को शब्दों में बाँध पाना बहुत मुश्किल है ,
इस समाज से उम्मीद से ज्यादा प्यार मिला है , सभी का दिल से आभार ......
अभी कुछ दिन पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ,

आयोजन श्यामलाल कॉलेज में हुआ , कार्यक्रम इतना अच्छा रहा कि आने वाले कार्यक्रमों का निमंत्रण पहले ही मिल गया,
सभी श्रोताओं ने भरपूर सहयोग किया, हँसते हँसाते कब समय बीत गया कुछ पता ही नहीं चला ,
अभी कुछ रोज़ पहले ही तो घर से निकले थे खाली हाथ, बस अपना जज्बा और माँ पिता, ईश्वर की दुआए साथ थी।
ये आप लोगो का प्यार ही है जिसने प्रभात को प्रभात "परवाना" तक का सफ़र तय करने की हिम्मत दी,

कार्यक्रम की विडिओ लिंक देखने के लिए कई मित्रो के मेल आये, लिंक यू -ट्यूब पर अपलोड कर दी गयी है
आशा है आप सभी को पसंद आएगी




        कवि प्रभात "परवाना"
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सोमवार, 1 जुलाई 2013

आईने काले हो गए


सच्चाई के आईने, काले हो गए,
बुझदिलो के घर में, उजाले हो गए,
झूठ बाज़ार में, बेख़ौफ़ बिकता रहा,
मैंने सच कहा तो, जान के लाले हो गए.....

लहू बेच बेच कर, जिसने, औलादे पाली,
भूखा सो गया, जब बच्चे कमाने वाले हो गए
.....

लहजा मीठा, मिजाज़ नरम, आँखों में शरम,
सब बदल गया, जब वो शहर वाले हो गए
.....

अपनी कमाई से, एक झोपड़ी ना बना सके,
वो सियासत में आये, तो महल वाले हो गए
.....


        कवि प्रभात "परवाना"
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