रौब अब खुदा पर, जमाने लगे है लोग,
लूट कर ही खुदा को, खाने लगे है लोग,
तहजीब नहीं खुद को, निगाह से निगाह मिलाने की,
ऐसे नहीं, ऐसे लो फैसले, हमें बताने लगे है लोग..........
ना जाम, ना साखी, ना पैमाना, ना दर्द है फिजा में,
बस सूखी सूखी महफिले सजाने लगे है लोग.........
व्यापार बन गया है, अजनबी को लूटना
किस कदर गिर गिर कर, कमाने लगे है लोग..........चिराग-ए-इश्क को मैं, मयस्सर क्यों करू?
हवा में मेरी बात को, उड़ाने लगे है लोग.........
अब खाम से सवाल है, सबूत-ए-वजूद पर
क्यों खुदा को इस कदर, आजमाने लगे है लोग.......
---------------------------------कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
6 टिप्पणियां:
AS always... fact to today life... nice composotion.
bhai aap shayari urdu zabaan mein karte ho likhte hindi main ho aur kahte ho apne ko kavi. shayar kyu nhi.aapko urdu ko uska haq dena chahiye.aap kaha karo main urdu shayari karta hu. warna hindi main kavitayen likhiye phir dekhna
bhaut khoob first time dekha hai aisa blog jitni tarif ki jaye kam hai
बहुत बढ़िया..
kya bat hai!!!!!!
kya bat hai!bhardwaj ji bahut khoob
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