सोमवार, 30 जून 2014

जरूरी तो नहीं......

इस दस्तक पर, मेहमां भी हो सकता है
हर बार ही हवा हो, जरूरी तो नहीं
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कसूर हालात का भी, हो सकता है
हर शख्स बेवफा हो, जरूरी तो नहीं
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मेरे हमदर्दो में ही, बैठा है कातिल
हर लब पे दुआ हो, जरूरी तो नहीं
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लाश पे जख्म-ए-मोहब्बत, है साहब
मेरा क़त्ल ही हुआ हो, जरूरी तो नहीं
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उसका एक एक सितम, लाइलाज निकला
हर जख्म की दवा हो, जरूरी तो नहीं
.....

माँ की आँखे भी पढ़ कर, देखिये जनाब
मस्जिद में ही ख़ुदा हो, जरूरी तो नहीं.....  


        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:-  www.prabhatparwana.com

मंगलवार, 10 जून 2014

हमको हालातो से लड़ना आता है....


उनको ग़म के आंसू, पीना आता है
हमको भीगी आँखे, पढ़ना आता है
खंजर खाके, इस महफ़िल तक आये है
हमको हालातो से, लड़ना आता है.....

ऐ पत्थर दिल, तेरी कड़वी यादो से
हमको मीठी ग़ज़लें, गढ़ना आता है.....

पढ़ ले तो तेरी आँखे, भी रो देंगीं
हमको ख़त में आँसू, भरना आता है.....

बस इतना ही सीखा है, इस दुनिया में
वादे की खातिर जीना, मरना आता है.....

कह देते हो सारी बाते, आंखो से
तुमको भी क्या खूब, करीना आता है.....

चादर तकिये मे कई, समंदर रखते हैं
दिलवालो को क्या क्या, करना आता है.....

      कवि प्रभात "परवाना"
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मंगलवार, 3 जून 2014

नशे भी हमने खुद्दारी नही छोड़ीं....

दुश्मनों ने भी ताउम्र, दुश्मनी नहीं छोड़ी
हम मौत से लड़े पर, ज़िंदगी नहीं छोड़ी
खुद को जला कर तब, रोशन किया मकां
जब अंधेरो ने मेरे घर मे, रौशनी नहीं छोड़ीं.....

जाम इस तरह पीया, कि तोबा नही टुटे
साहब नशे भी हमने, खुद्दारी नही छोड़ीं.....

अपने कातिल को खुद, खंज़र दे दिया
चकाचौंध मे भी हमने, सादगी नही छोड़ी.....

एक नकाब हटा कर, दूसरा लगा लिया
सियासत ने आवाम से, गद्दारी नहीं छोड़ी.....

मस्जिद नहीं गया, माँ का सजदा कर लिया
जिस तरह भी की, हमने बंदगी नही छोड़ीं.....


        कवि प्रभात "परवाना"
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