मंगलवार, 3 जून 2014

नशे भी हमने खुद्दारी नही छोड़ीं....

दुश्मनों ने भी ताउम्र, दुश्मनी नहीं छोड़ी
हम मौत से लड़े पर, ज़िंदगी नहीं छोड़ी
खुद को जला कर तब, रोशन किया मकां
जब अंधेरो ने मेरे घर मे, रौशनी नहीं छोड़ीं.....

जाम इस तरह पीया, कि तोबा नही टुटे
साहब नशे भी हमने, खुद्दारी नही छोड़ीं.....

अपने कातिल को खुद, खंज़र दे दिया
चकाचौंध मे भी हमने, सादगी नही छोड़ी.....

एक नकाब हटा कर, दूसरा लगा लिया
सियासत ने आवाम से, गद्दारी नहीं छोड़ी.....

मस्जिद नहीं गया, माँ का सजदा कर लिया
जिस तरह भी की, हमने बंदगी नही छोड़ीं.....


        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:-  www.prabhatparwana.com


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