शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

मै मर गया हूँ वो आये नहीं है...



गम नहीं ये की मै मर गया हूँ , गम यही की वो आये नहीं है,
बागो में किये थे जो वादे, उसने अब तक निभाए नहीं है,
गम नहीं ये की मै मर गया हूँ , गम यही की वो आये नहीं है,


जालिम दुनिया जलाने से पहले, कोई उनको यहाँ पर बुला लो,
मेरी आँखे खुली छोड़ देना, उनसे नजरे मेरी तो मिला दो,
यकीं है की वो आएँगे, अपने है पराये नहीं है...
गम नहीं ये की मै मर गया हूँ , गम यही की वो आये नहीं है,


कुछ निशा रह गए थे जो बाकी, कोई उनको छुपा कर मिटा दो,
मेरी मय्यत उठे उससे पहले, उनको मेरे गले से लगा दो
वो जो ख़त तुने मुझे लिखे थे, मैंने अब तक जलाये नहीं है,
गम नहीं ये की मै मर गया हूँ , गम यही की वो आये नहीं है,


न मरूँगा मै ना ही जलूँगा जब तक तेरा सहारा ना होगा,
ना ही रूह को आजादी मिलेगी ना ही जन्म दुबारा होगा,
इन राहो पर रखो कदम जी, मैंने कांटे बिछाये नहीं है
गम नहीं ये की मै मर गया हूँ , गम यही की वो आये नहीं है
बागो में किये थे जो वादे, उसने अब तक निभाए नहीं है..............


प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"


गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

साकी ही बैसाखी छीने तो मै क्या करू?

जी बहुत बड़ा हूँ मै,
पर सच कहू तो लंगड़ा हूँ मै ,
सच्चाई को देखकर
शर्म से गड़ा हूँ मै


एक साकी पर ही विश्वास था,
बस वो ही मेरी आस था,
होंगे हुज़ूर आप दौलत वाले
और क्या मेरे पास था
विश्वास का नाम भी धोखा निकला हाय क्या करू?
साकी ही बैसाखी छीने तो मै क्या करू?


धोखे की रोटी खाता हूँ,
गम की सब्जी ही पाता हूँ,
अश्को को पी जाता हूँ
जब मैखाने जाता हूँ,
नाम लेके साकी का अधरों पर पैमाना रखू?
पर साकी ही बैसाखी छीने तो मै क्या करू?


हालातो ने मशहूर किया है,
कुछ कहने पर मजबूर किया है,
बस आसू से रिश्ता मेरा
खुशी ने मुझको दूर किया है,
इतना मर मर  की जिया हूँ अब और कितना मरू?
पर साकी ही बैसाखी छीने तो मै क्या करू?


झूठ नहीं जानता, इसलिए लंगड़ा हूँ
छल नहीं मानता, इसलिए लंगड़ा हूँ
सीना नहीं तानता, इसलिए लंगड़ा हूँ,
ये दुनिया कुछ कहे मुझे फर्क नहीं
अगर साफ़ रहना, साफ़ कहना, जुल्म ना सहना 
लंगड़ापन है तो मै लंगड़ा ही सही
तो मै लंगड़ा ही सही..........


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"



बुधवार, 27 अप्रैल 2011

अपनों के मायने बदलने लगे है.......


चढ़ा मै तो सूरज भी ढलने लगे है
मेरी तर्रकी से जलने लगे है 
बुला लेता अपनों को इस खुशी में,
पर अपनों के मायने बदलने लगे है,
उठ उठ के अक्सर सोते है वो,
आँखों को पानी से धोते है वो,
यकीं नहीं उन्हें इस पल पर,
आहे भर भर के रोते है वो,
बिम्ब निहारते है अक्सर पर,
शिरकत-ए-आईने बदलने लगे है,
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है,
बहुत कोशिशे हराने की की 
बहुत कोशिशे लड़ाने की की
काटे बिछाए उन्होंने जब जब मैंने
कोशिशे कदम बढाने की की
कदम मेरे खू से सने देख कर 
दुश्मन तक आँखे मलने लगे है,
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है,
जी सही कहा गुनेहगार हूँ मै 
जल्दी है आपको इन्तजार हूँ मै,
बस अब खामोशी का इम्तहान ना लो
बोल उठा तो फिर ललकार हूँ मै,
रवैया मेरा कड़ा देखकर,
साजिशो को अपनी धरा देखकर 
हद्द है वो संग मेरे चलने लगे है,
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है...


प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"



सोमवार, 25 अप्रैल 2011

तुम फूलो में हो तुम सावन में हो...

तुम फूलो में हो तुम सावन में हो,
मेरे दिल का बगीचा सारा ही खाली, नाचती मोरनी सी आँगन में हो,
तुम फूलो में हो तुम सावन में हो,
आज कान्हा गए है बरसाने राधे ,
पता ये चला है,तुम वृन्दावन में हो,
तुम फूलो में हो तुम सावन में हो
तुम धरा की हो देवी हो नभ की हवा
तुम समंदर में हो आग पावन में हो
तुम फूलो में हो, तुम सावन में हो
क्यों ना आये ये दिल अब उसी चाँद पर,
वो चाँद वो तारे जिसके दामन में हो
तुम फूलो में हो, तुम सावन में हो
मेरे दिल का बगीचा सारा ही खाली, नाचती मोरनी सी आँगन में हो,
तुम फूलो में हो, तुम सावन में हो


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


वो जलाते रहे और मै जलता रहा


वो जलाते रहे और मै जलता रहा
सिलसिला ना थमा यू ही चलता रहा
फ़ना कर खुशी मैंने दुःख को चुना,
कोई तो मेरा बता दो गुनाह 
वो लुटाते रहे और मै लुटता रहा
वो जलाते रहे और मै जलता रहा
यू तो मेरे भी दीवाने थे
मै था शम्मा जी मेरे भी परवाने थे
जी जले थे सभी मेरे आगोश में,
पर रहा था खामोश तेरे होश में,
राहे थी गलत पर मै चलता रहा
वो जलाते रहे और मै जलता रहा
अब तो वीरानियो से हुई है सुलह,
हाथ थमा है सारी बाते भुला
आज न कोई आओ मेरी राह में,
मरना है आज जालिम तेरी बाह में,
सब फिसलता रहा हाथ मलता रहा,
वो जलाते रहे और मै जलता रहा
वो जलाते रहे और मै जलता रहा......


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना" 



आपकी कसम......

पर नहीं है पर परिंदा हूँ मै
हालातो पर शर्मिंदा हूँ मै,
मेरा हाजमा देख कर हैरान है दुनिया
इतने गम खा कर भी जिन्दा हूँ मै


दिल जिनका नर्म और दिमाग सादा था,
जिनसे उम्र भर साथ निभाने का वादा था
आज वे ही गुमराह कर बैठे है मुझे 
जिन पर विश्वास मुझे खुद से ज्यादा था 



आईने भी इजहार करने लगे है,
छुप छुप के दीदार करने लगे है,
मेरी तस्वीरे उनकी किताबो से मिली है,
सबूत है, वो प्यार करने लगे है 


इस कदर उड़ गया उनके होश में,
याद करके पल आ जाता हूँ जोश में
वो और मै झूले पर, माहौल देखिए
मै उनके और वो मेरे आगोश में 




दुनिया के लिए प्यार एक मजा है,
आशिक के लिए प्यार एक सजा है,
होगा अंधेरो को गिला प्यार से
क्युकी "प्रभात" के लिए प्यार एक नशा है 

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


शनिवार, 23 अप्रैल 2011

उसने कभी प्यार किया था.....


चांदनी रात में मैंने इजहार किया था,
आँखे ततेरी उसने फिर इनकार किया था,
उसकी बेवफाई ही सबूत बनी है दोस्तों,
की हाँ उसने मुझसे कभी प्यार किया था......
ये जो इश्क का रोग है ,सब उसका ही दोष है 
दर्द-ए-दिल देके मुझे बीमार किया था 
उसकी बेवफाई ही सबूत बनी है दोस्तों,
की हाँ उसने मुझसे कभी प्यार किया था....
दिल को खिलौना जान कर, बस एक मजाक मान कर 
तोडा, मरोड़ा और फिर उसे तार तार किया था 
उसकी बेवफाई ही सबूत बनी है दोस्तों,
की हाँ उसने मुझसे कभी प्यार किया था.....
क्यों लिखे ख़त मुझे खून वाले उसने 
गम के समंदर में भी सुकून वाले उसने 
नाम लिख हथेली पर मेरा क्यों इख्तियार किया था
उसकी बेवफाई ही सबूत बनी है दोस्तों,
की हाँ उसने मुझसे कभी प्यार किया था...............


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"





मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

ज्यादा नहीं कहता बस...

मैं हिमालय, गम की सेना बढ़ रही थी,
फिर काफिर की नजर मेरी मंजिल को तड़ रही थी,
मेल खुदा का देखो हुजूर,इधर मैं पत्थर हो रहा था,
उधर किस्मत में ठोकर बढ़ रही थी

हाँ हाँ मैं बोल रहा हूँ मगर खामोश हूँ मैं,
हाँ हाँ मैं चल रहा हूँ मगर बेहोश हूँ मैं
दर्द, गम बेवफाई क्या क्या दे गई और मैं कुछ भी ना दे सका
कितना एहसानफरामोश हूँ मैं, कितना एहसानफरामोश हूँ मैं

मेरे होठो को छु लिया आज फिर उसने ये कह के की तेरी इस याद के सहारे जिंदगी काट लूँगा.....
और अगर तू दूर हुई मुझसे एक पल को भी तो ये जिस्म तेरे नाम से मंदिरों में बाट दूंगा...............

आज फिर किसी गम ने ललकारा है मुझे,
जीतने की चाह में फिर हारा है मुझे
मारा होगा दुनिया ने मजनू को पत्थरों से
इस जमाने ने फूलो से मारा है मुझे.....

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




रविवार, 17 अप्रैल 2011

उनसे सपने में मुलाकात हुई......



कल फिर उनसे सपने में मुलाकात हुई,
खुदा की महर हुई की उनसे बात हुई,
"आप कैसे हो" ये कहा मैंने और फिर इस तरह शुरुवात हुई,
मुख चंदा, बिदिया तारा, नैन झील पे सब वारा
केश वर्ण की बात कहू क्या, लगता जैसे रात हुई,
कल रात उनसे मुलाकात हुई,
मेघ पलक चल दूर तलक, कर सैर फलक,
मद्धम मद्धम सी खोल पलक मोती की बरसात हुई,
कल रात उनसे मुलाक़ात हुई,
कोमल अधर, बेचैन कर, हो ना सबर
क्या गढ़ा है तुमको खूब खुदा ने, उसकी मेहनत की दाद हुई 
कल रात उनसे मुलाकात हुई,
तुमको सागर मैं कह देता पर सागर तो चुल्लू लगता था,
तुमको अम्बर मैं कह देता पर अम्बर तो उल्लू लगता था
कुदरत-की बक्शीश कहू या  कुदरत की करामात हुई
कल रात उनसे मुलाकात हुई 
खुदा की महर हुई की उनसे बात हुई 


प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"



शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

एक रात उठ उठ कर रोया..........



एक रात उठ उठ कर रोया अपनी कहानी पे,
कभी दिल के दर्द पे, कभी आँखों के पानी पे,
लात मार कर मेरे बचपन को कुचल दिया जिसने,
सुबक सुबक कर रोया मै उस जवानी पे .......
घर से निकला दूर तलक ठंडी फिजा में
"प्रभात" को पुकारती एक अनकही दिशा में,
सोचा आज एक पत्ते पर लिखू अपनी कहानी,
पर पतझड़ के मौसम में, पीले पत्ते तक हवा बहा ले गयी,
और फिर सर पीट पीट कर रोया, मै अपनी इस भोली नादानी पे
एक रात उठ उठ कर रोया मै अपनी कहानी पे,
लात मार कर मेरे बचपन को कुचल दिया जिसने,
सुबक सुबक कर रोया मै उस जवानी पे
सुबक सुबक कर रोया मै उस जवानी पे .......


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


मुझे डर लगता है.......


धरती की सारी लकड़ी लग जाएगी मेरी चिता बनाने के बाद ,
लता, फूल पत्ते सब ख़तम ,फिर चिता सजाने के बाद ,
ज्यादा कुछ नहीं, डर बस इतना है दोस्तों
कही सूरज ना बुझ जाए मेरी चिता जलाने के बाद
कही सूरज ना बुझ जाए मेरी चिता जलाने के बाद

लेकर बहा देना समंदर में अंश मेरा ,
गंगा ना सूख जाए मेरी राख बहाने के बाद,
ना बनाना, ना सजाना, ना जलाना चिता, पर दोस्तों
मुझे ना भूल जाना मेरे मरजाने के बाद 

मुझे ना भूल जाना मेरे मरजाने के बाद
जुगनुओ से मन क्यों बहलाते हो पागल
"प्रभात" हूँ फिर आ मिलूँगा रात ढल जाने के बाद  
"प्रभात" हूँ फिर आ मिलूँगा रात ढल जाने के बाद........

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना "  

 




मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

सबसे अमीर हूँ मै...

एक मुट्ठी में धरती, एक मुट्ठी में समंदर ले के चलता हूँ,
फिर भी क्यों लगता है, की कुछ कम ले के चलता हूँ,
बहुत छानबीन के बाद पता चला है यारो 
धरती में धोखे, और समंदर में आसुओ के गम ले के चलता हूँ,
यही फर्क है सब में और मुझमे,
सब रोकर भी हसते हैं, मै हसकर भी आँखे नम रखता हूँ
सब कहते है "प्रभात परवाना" है तू, 
पर मै जलकर भी महफ़िल-ए-रोशन का दम रखता हूँ.

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"

 




रविवार, 10 अप्रैल 2011

यू ही जल जाता मै......


यू ही  जल जाता मै गर तूने देख लिया होता,
कुछ घबराकर, कुछ इतराकर, अपने मस्तक पे बल से डालकर
 पल्लू फेर लिया होता,
यू ही  जल जाता मै गर तूने देख लिया होता,
जी मै तो एक कट्पुतला था,
शायद मेरा मन उथला था,
जी लेता दो पल वो प्यार से,
कह लेता कुछ बात यार से,
आँखों से अपनी  देख जरा 
गर तूने सेक दिया होता
यू ही  जल जाता मै गर तूने देख लिया होता,
तेरे तो थे ठाट अनोखे,
जुल्फों के तूफानी झोखे,
मृत्यु से कुछ मांग रियायत
छोड़ के अपने शोक सियासत
अहम् बना जो तेरा दुश्मन 
उसको फेक दिया होता,
यू ही  जल जाता मै गर तूने देख लिया होता,
आँखे अपनी मूद के मै तो 
पी के मोती बूँद के मै तो
मोहरा बन के साजिश का
भेष मै लेके आशिक का 
शुरू किया क्यों खेल प्यार का,
शुरू में छेक दिया होता 
यू ही  जल जाता मै गर तूने देख लिया होता
यू ही  जल जाता मै गर तूने देख लिया होता......

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"

सबसे गरीब हूँ मै...


जला के खुद की राख को, 
मिटा के खुद की साख को,
राजा था कभी महफ़िल का यारो,
अब तो अपनी शान तक सौप आया हूँ  ख़ाक को,
न दिए न चिराग है,
न सुर है ना ही राग है,
मैंने उसी का संग चुना 
जिसे सबने कहा ये नाग है
उस शाम जब दिवाली थी, 
चारो और खुशहाली थी,
बुझा बुझा सब बूझा मुझको,
टूटी मन की डाली थी,
जीवन लगता जाल के जैसा,
हर पल लगता साल के जैसा
फूल फूल मै कहता जिसको,
चुभ गया वो भाल के जैसा
आसू की बरसात हो गयी
अजब गजब ये बात हो गयी,
अभी खेल न खेला मैंने 
जाने कैसे शय और मात हो गयी,
हवा चली मतवाली सी 
पर चुभती  मुझको  गाली सी,
देखो रब के खेल सुहाने, 
इधर जिन्दगी से कंगाल हुआ मै,
उधर ये दुनिया मालामाल हो गयी,
ना मेरे दुःख को दिल पे लेना,
दुःख तो है अब मेरा गहना,
पोछ ले आसू अपने प्यारे
देखो रोते रोते रात हो गयी
इधर जिन्दगी से कंगाल हुआ मै,
उधर ये दुनिया मालामाल हो गयी,
उधर ये दुनिया मालामाल हो गयी,

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"

प्यार से लूटती है वो , मजा ही कुछ और है.........


बूढ़े घुटनों का सवाल है सीड़ियो   पर,
बीज बगावत पर आज है पीड़ियो पर 
हालात-ए-क़त्ल, रंजिश की हद्द है ये,
मोती तक शक करते है सीपीओ पर 



चुपके चुपके आसुओ से मुलाकात करते है वो,
चांदनी रात झील किनारा याद करते है वो 
देर की हद्द देखिए हुज़ूर
मेरी कब्र पर आकर वफ़ा की बात करते है वो.

ये दिल तेरा दीदार क्यों करता है,
जीत कर भी अपनी हार क्यों करता है,
प्यार की हद्द है उसका मरजाना ,क्यों आखिर क्यों?
परवाना शम्मा से इतना प्यार क्यों करता है 


पल पल करने में ये पल निकल गया,
और पता ही ना चला किस पल में मै पल गया
उसे बदल की कोशिश में फिर चला मै, हद्द फिर हुई,
और कमाल है उसकी ही तासीर में ढल गया

चलो आज आपकी मजबूरी ने हमें ये सबक दे दिया,
बुझ गया एक तेल की कमी से तड़पता दिया 

मेरी खुशी आपसे है,
मेरे गम आपसे है,
कुछ ज्यादा अहमियत नहीं आपकी फिर भी,
मेरे जिस्म का दम आपसे है

ये तो आपका प्यार है, वरना मेरे दिवानो की तादात है हजारो में,
ये आपकी किस्मत है की मैंने आपको चुना
 वरना उम्मीदवार और भी है हुस्न के बाजारों में 

साफ़ नहीं कहती उसकी रजा ही कुछ और है,
प्यार से लूटती है वो , मजा ही कुछ और है,
फर्क नहीं इस पत्थर को किसी भी मार का 
उसके आँखों के कोड़ो की सजा ही कुछ और है

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"   

एक तड़प....


आनंदित हो आँचल को देखा मैंने कितना पावन था,
मृग नैनों की प्यास बुझाता जैसे कोई सावन था
रो रहे थे वो नजरे झुकाए हमारे हाल पर,
नजरे हमारी टिकी हुई थी उनकी जुल्फों के जाल पर,
कह दिया जब तुन्हें मिलेंगे अगले जनम में,
तब से तड़प रहे हम मौत को, पड़ के उनके नैनो की धार पर,
रो रहे पर दामन का सहारा ना मिला हमें,
खो गया जो एक बार दुबारा न मिला हमें 
हम इंतकाल करके सोच रहे थे, वो रोएंगे हम पर,
पर किस्मत ऐसी थी की, उनके हसने का नजारा मिला हमें 
ठण्ड का मौसम आता था, जब वो चुन्नी लेके चलती थी,
गर्मी लगती थी मुझको, जब वो आँखे अपनी मलती थी,
जुल्फों को जरा हिला कर जब वो पानी जरा गिरती थी,
भवरें सा शर्माता था मै, वो कलिओ सी मुस्काती थी,
मुझसे नजर मिला कर उसने, मरने को मजबूर किया,
उसने ही आवारा करार दिया, जिसको मैंने मशहूर किया
राह मै आज भी देखा रहा हूँ. उसके पावन आँचल का,
जिसने विदा किया था मुझको, तिलक लगा कर काजल का
अक्सर पानी सा नीरस निज जीवन अपना लगता है,
शिला से रगड़े खा खा देखो पानी कितना मजता है,
याद दिलाता है मन मेरा देख तू कितना महान है,
तुझसे ही जीवन में चंचलता, तुझसे लाखो की जान है,
जो ना मिला उसे भूल जा, जब कहा था रिश्तेदारो ने,
अपनी कीमत लगा रहा था मै रिश्ते के बाजारों में,
आज एहसास हुआ है मुझको, गलती थी मेरी ही ज्यादा,
वीराने से मांग रहा था , उम्र भर साथ निभाने का वादा
वीराने से मांग रहा था , उम्र भर साथ निभाने का वादा.....

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"  

मुझे छोड़ कर जा चुकी है वो..........



उसके महल को देख कर ही समझ गया फिर किसी गैर को अपना चुकी है वो
मुझसे मंजूर ना था गरीबी की खातिर, किसी रहीस के आगोश में जा छुपी है वो ,
मिला  उससे तो चेहरा पढ़ के समझा, मुझे छोड़ कर आज भी दुखी है वो 
हार जाएगा मत खेल होली उसके संग, हजारो रंग मुझे दिखा चुकी है वो ,
विश्वास भी  धोखा, वफ़ा भी धोखा, धोखा है जीना, मरना भी धोखा,
जाने क्या क्या सबक सिखा चुकी है वो ,
मेरे अश्को पे ना जा मेरे हमदर्द, खुश हूँ  की मुझे छोड़ कर जा चुकी है वो
खुश हूँ  की मुझे छोड़ कर जा चुकी है वो..........

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

चाँद और मेरी बात होती है...


चाँद और मेरी बात होती है,
जब जब ये रात होती है
मै सोचता हूँ  ऐसा गम मुझे मिल जाए,
मै यहाँ लिखू, वहा पढ़ कर नशा हो जाए 
मै बेचैन तड़पता हूँ , ये दुनिया बेसुध  होकर सोती है, 
चाँद और मेरी बात होती है,
मंशा उसकी गर शुरू में साफ़ कर देता,
 दरियादिली  होती मेरी मै माफ़ कर देता
लोग सोते है सपनो से लिपट के, मेरी तन्हाई साथ होती है,
चाँद और मेरी बात होती है,
उसका भोला चेहरा मुझे दे ही क्या सका,
एक दिल था मेरे पास वो भी न बच सका
पहले मै रोता हूँ  सिसिक सिसक के , फिर ये रात रोती है,
चाँद और मेरी बात होती है,
उसे देखता हूँ  एक टक
अश्क न टपके जब तक
मेरे जख्म  देखकर, रात जज्बात खोती है,
चाँद और मेरी बात होती है
कुछ गम वो सुनाता है, कुछ गम मै सुनाता हूँ ,
हाल ए दिल वो बताता है, हाल ए दिल मै बताता हूँ
वहा अश्क उसका , यहाँ अश्क मेरा 
फिर यूं  ही बरसात होती है,
चाँद और मेरी बात होती है.... 
जब जब ये रात होती है.....
चाँद और मेरी  बात होती है......



प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

ऐसे दोस्तों से तो दुश्मन अच्छे...


किसी को मेरे बढ़ने  से दुःख था,
किसी को मेरे पढने   से दुःख था,
कुछ करा तो रोका मुझे क्यूंकि  उन्हें मेरे  कुछ करने से दुःख था,
 सीढ़ी थी सफलता की सामने , और फिर चढ़ गया मै,
पर हमदर्दों को मेरे चढ़ने  से दुःख था,
ले के दर्द के थपेड़े तड़पता रहा मै रात भर,
पर कहा महफ़िल को मेरे तड़पने से दुःख था
भाग्य के भण्डार थे जब खाली, बजती थी ताली मेरे हश्र पर,
मिला उन्नती  का खजाना तो भर लिया मैंने,
शुभचिंतको को मेरे भरने से दुःख था
फिर जल गया मेरे जनाजा, जो देखा उसने घूर के 
पर कहा दुनिया  को मेरे जलने से दुःख था.
बदलजा बदलजा बदलजा कहा तो बदल गया मै
फिर भला क्यों उन्हें मेरे बदलने से दुःख था
हजारो दोस्तों ने दिए जिंदगी को जख्म पर 
एक था दुश्मन जिसे मेरे मरने पे दुःख था
महफूज रहे खुशिया आपकी कह चल दिया अपनों से मै
पर भीड़ में एक अंजान को मेरे चलने से दुःख था...........

प्रभात कुमार भारद्वाज  "परवाना "



शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

वो चाँद है या चाँद वो है .....


मेरे जख्मो पे मलहम यु लगाना ठीक न होगा,
लगी हो आग इस दिल में बुझाना ठीक न होगा,
गर गाली भी देनी हो तो मेरे मुह पे देदो तुम
लबो पे आ गयी जो बात झुपाना ठीक न होगा

खुदा खुद देखता  उसने बनाया क्या नजारा है,
जीता था वो कल परसों अभी खुद से ही हारा है,
वो बारिश है, वो सावन है, वो नीला आसमा है वो
वो चलती है तो चंदा है वो रूकती तो तारा है

नमक के आसुओ को यु बहाना ठीक ना होगा
तेरे दर से यु खाली हाथ जाना ठीक ना होगा
यु ही ढल जाएगा ये दिन तुम्हारी राह ताकने में
मम्मी जी ने रोका था बहाना ठीक न होगा

तुम्हारी जीत की खातिर मै अपनी हार करता हूँ 
तेरी तस्वीर से हरदम मै आँखे चार करता हूँ 
अनजान बनती है या फिर अनजान ही है तू,
अब क्या साफ़ ही कह दू मै  तुझसे प्यार करता हूँ



इतरा के इठलाई इस कदर की जीना बेहाल हो गया
छत्त पर खड़ी थी चांदनी की रात में ,
लोग बोले दो दो चाँद कमाल हो गया कमाल हो गया ...............


प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"