मेरे जख्मो पे मलहम यु लगाना ठीक न होगा,
लगी हो आग इस दिल में बुझाना ठीक न होगा,
गर गाली भी देनी हो तो मेरे मुह पे देदो तुम
लबो पे आ गयी जो बात झुपाना ठीक न होगा
खुदा खुद देखता उसने बनाया क्या नजारा है,
जीता था वो कल परसों अभी खुद से ही हारा है,
वो बारिश है, वो सावन है, वो नीला आसमा है वो
वो चलती है तो चंदा है वो रूकती तो तारा है
नमक के आसुओ को यु बहाना ठीक ना होगा
तेरे दर से यु खाली हाथ जाना ठीक ना होगा
यु ही ढल जाएगा ये दिन तुम्हारी राह ताकने में
मम्मी जी ने रोका था बहाना ठीक न होगा
तुम्हारी जीत की खातिर मै अपनी हार करता हूँ
तेरी तस्वीर से हरदम मै आँखे चार करता हूँ
अनजान बनती है या फिर अनजान ही है तू,
अब क्या साफ़ ही कह दू मै तुझसे प्यार करता हूँ
इतरा के इठलाई इस कदर की जीना बेहाल हो गया
छत्त पर खड़ी थी चांदनी की रात में ,
लोग बोले दो दो चाँद कमाल हो गया कमाल हो गया ...............
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
1 टिप्पणी:
khoobsurat
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