रविवार, 10 अप्रैल 2011

एक तड़प....


आनंदित हो आँचल को देखा मैंने कितना पावन था,
मृग नैनों की प्यास बुझाता जैसे कोई सावन था
रो रहे थे वो नजरे झुकाए हमारे हाल पर,
नजरे हमारी टिकी हुई थी उनकी जुल्फों के जाल पर,
कह दिया जब तुन्हें मिलेंगे अगले जनम में,
तब से तड़प रहे हम मौत को, पड़ के उनके नैनो की धार पर,
रो रहे पर दामन का सहारा ना मिला हमें,
खो गया जो एक बार दुबारा न मिला हमें 
हम इंतकाल करके सोच रहे थे, वो रोएंगे हम पर,
पर किस्मत ऐसी थी की, उनके हसने का नजारा मिला हमें 
ठण्ड का मौसम आता था, जब वो चुन्नी लेके चलती थी,
गर्मी लगती थी मुझको, जब वो आँखे अपनी मलती थी,
जुल्फों को जरा हिला कर जब वो पानी जरा गिरती थी,
भवरें सा शर्माता था मै, वो कलिओ सी मुस्काती थी,
मुझसे नजर मिला कर उसने, मरने को मजबूर किया,
उसने ही आवारा करार दिया, जिसको मैंने मशहूर किया
राह मै आज भी देखा रहा हूँ. उसके पावन आँचल का,
जिसने विदा किया था मुझको, तिलक लगा कर काजल का
अक्सर पानी सा नीरस निज जीवन अपना लगता है,
शिला से रगड़े खा खा देखो पानी कितना मजता है,
याद दिलाता है मन मेरा देख तू कितना महान है,
तुझसे ही जीवन में चंचलता, तुझसे लाखो की जान है,
जो ना मिला उसे भूल जा, जब कहा था रिश्तेदारो ने,
अपनी कीमत लगा रहा था मै रिश्ते के बाजारों में,
आज एहसास हुआ है मुझको, गलती थी मेरी ही ज्यादा,
वीराने से मांग रहा था , उम्र भर साथ निभाने का वादा
वीराने से मांग रहा था , उम्र भर साथ निभाने का वादा.....

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"  

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