शनिवार, 9 अप्रैल 2011

चाँद और मेरी बात होती है...


चाँद और मेरी बात होती है,
जब जब ये रात होती है
मै सोचता हूँ  ऐसा गम मुझे मिल जाए,
मै यहाँ लिखू, वहा पढ़ कर नशा हो जाए 
मै बेचैन तड़पता हूँ , ये दुनिया बेसुध  होकर सोती है, 
चाँद और मेरी बात होती है,
मंशा उसकी गर शुरू में साफ़ कर देता,
 दरियादिली  होती मेरी मै माफ़ कर देता
लोग सोते है सपनो से लिपट के, मेरी तन्हाई साथ होती है,
चाँद और मेरी बात होती है,
उसका भोला चेहरा मुझे दे ही क्या सका,
एक दिल था मेरे पास वो भी न बच सका
पहले मै रोता हूँ  सिसिक सिसक के , फिर ये रात रोती है,
चाँद और मेरी बात होती है,
उसे देखता हूँ  एक टक
अश्क न टपके जब तक
मेरे जख्म  देखकर, रात जज्बात खोती है,
चाँद और मेरी बात होती है
कुछ गम वो सुनाता है, कुछ गम मै सुनाता हूँ ,
हाल ए दिल वो बताता है, हाल ए दिल मै बताता हूँ
वहा अश्क उसका , यहाँ अश्क मेरा 
फिर यूं  ही बरसात होती है,
चाँद और मेरी बात होती है.... 
जब जब ये रात होती है.....
चाँद और मेरी  बात होती है......



प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"

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