मंगलवार, 10 जनवरी 2012

अपनों के किरदार बदलते देखे है......


एक छोटी सी बात पर परिवार बदलते देखे है,
जरुरत पड़ी तो सब रिश्तेदार बदलते देखे है,
यकीन सा उठ चला हर शख्स से "प्रभात"
मैंने अक्सर अपनों के किरदार बदलते देखे है......

जितना दिया खुदा ने, उतनी हवस बढ़ी
आये दिन लोगो के व्यापार बदलते देखे है.....

कल खबरों में छा  जाना था, तेरे नापाक इरादों को 
कुछ गड्डी दे के नोटों की, अखबार बदलते देखे है......

लो आ गए वो भी मेरी बदनाम महफ़िल में,
अरे हमने बड़े बड़े इज्जतदार बदलते देखे है.......

किस सरगम-ऐ-सांस पर जीवन दे "परवाना "
दो दो कौड़ी की खातिर फनकार बदलते देखे है.......

--------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"


गुरुवार, 5 जनवरी 2012

जब सोता है ज़माना..........


जब सोता है ज़माना खुद से बेखबर होकर,
फिर जाग पड़ता हूँ मैं कुछ बेसबर होकर....

मेरे लब्जो का मेरे राज़ से मिलन,
मेरी खामोशी का रात से मिलन,
और कल का आज से मिलन....

कागज़ का कलम से इश्क होता है,
मेरी आसू मेरी पलकों से मिलते है.

और सबसे बड़ी बात

मैं अपनी तन्हाई को पूरा समय दे पाता हूँ,
दिन भर के किरदार को उतार फेंक खुद से मिलता हूँ,
जाने कितने नकाब मेरे वजन बढ़ा रहे थे,
कही दूर रखे जाते है...........

गले लगाकर रोता हूँ तन्हाई को,
और कभी कभी तो सिसक सिसक कर,
आंसू गला रौंध देते है,
अल्फाजो की कोई जगह नहीं बचती,

खूब मिलन के बाद हल्की हल्की आँखे अब भारी होने लगती है,
और निद्रा मुझे अपने आगोश में जकड़ लेती है,

रह जाते है वो नकाब एक नयी सुबह की तलाश में,
कल फिर एक नया किरदार ओढ़ मुझे दुनिया से लड़ने निकलना जो है.........

जब सोता है ज़माना खुद से बेखबर होकर,
फिर जाग पड़ता हूँ मैं कुछ बेसबर होकर....

-----------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


एक नकाब ओढ़ आ रहा है कोई.........


नजरे झुकी है, और गुलाब, ला रहा है कोई,
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई.........

नैनो में तीर, होठो पे हँसी, भीगी खुली जुल्फे,
बेवजह क्यों जुल्म, ढा रहा है कोई......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई..........

कई रात नहीं सोया, एक ख्व़ाब का असर है,
मासूम बन फिर सपना, सजा रहा है कोई......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई.......

गरीब था मैं पहले, अब फ़कीर हो गया हूँ,
मुझे लूट इस तरह, क्या पा रहा है कोई.......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई............

मेरे हालात अब दुआओं के, काबिल ना रहे,
और अब जाकर तरस, खा रहा है कोई......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई..........

नजरे झुकी है, और गुलाब, ला रहा है कोई,
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई.........

-----------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"