नजरे झुकी है, और गुलाब, ला रहा है कोई,
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई.........
नैनो में तीर, होठो पे हँसी, भीगी खुली जुल्फे,
बेवजह क्यों जुल्म, ढा रहा है कोई......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई..........
कई रात नहीं सोया, एक ख्व़ाब का असर है,
मासूम बन फिर सपना, सजा रहा है कोई......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई.......
गरीब था मैं पहले, अब फ़कीर हो गया हूँ,
मुझे लूट इस तरह, क्या पा रहा है कोई.......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई............
मेरे हालात अब दुआओं के, काबिल ना रहे,
और अब जाकर तरस, खा रहा है कोई......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई..........
नजरे झुकी है, और गुलाब, ला रहा है कोई,
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई.........
-----------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
1 टिप्पणी:
waah waah !
bahut khoob !
abhinav
anupam !
sundartam !
____badhaai ho bhai............
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