गुरुवार, 5 जनवरी 2012

एक नकाब ओढ़ आ रहा है कोई.........


नजरे झुकी है, और गुलाब, ला रहा है कोई,
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई.........

नैनो में तीर, होठो पे हँसी, भीगी खुली जुल्फे,
बेवजह क्यों जुल्म, ढा रहा है कोई......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई..........

कई रात नहीं सोया, एक ख्व़ाब का असर है,
मासूम बन फिर सपना, सजा रहा है कोई......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई.......

गरीब था मैं पहले, अब फ़कीर हो गया हूँ,
मुझे लूट इस तरह, क्या पा रहा है कोई.......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई............

मेरे हालात अब दुआओं के, काबिल ना रहे,
और अब जाकर तरस, खा रहा है कोई......
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई..........

नजरे झुकी है, और गुलाब, ला रहा है कोई,
एक नकाब ओढ़ फिर, आ रहा है कोई.........

-----------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"



1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

waah waah !

bahut khoob !

abhinav
anupam !
sundartam !

____badhaai ho bhai............