हम क्या थे और हमे, क्या बना दिया
उसकी महर ने हमे, बंदा बना दिया
मुफ़लिस बच्चे ने पूछा, रोटी क्या शय है
मैंने कलम उठायी और, चंदा बना दिया
अँधेरे हर पल मुझे, रास्ता दिखाते रहे
इस चकाचौंध ने मुझे, अंधा बना दिया
एक ज़माना था, इबादत-ए-शायरी का
कुछ खुदगर्जों ने इसे, धंधा बना दिया
मौत को रंगीनिया अता की, इस तरह
मैंने कफ़न रंग दिया, तिरंगा बना दिया।
बिंदिया, पाजेब, कुमकुम खरीद लाया
सच्ची ख़ुशी खरीद के ला, तो मानू .....
बदन खरीद लाया, हवस मिटाने को
दिलकशी खरीद के ला, तो मानू .....
दो चार मैकदों से, मेरा क्या होगा?
बेखुदी खरीद के ला, तो मानू .....
चाँद पर ज़मीं खरीद बैठा, पागल
चाँदनी खरीद के ला, तो मानू.....
पैसा पैसा पैसा पैसा, अरे गुरूरबाज़
ज़रा ज़िंदगी खरीद के ला, तो मानू.....
ये किसने भेजा है पैगाम, मत पूछिये
किसका ख़त है मेरे नाम, मत पूछिये
मोहब्बते बाँटने घर से, जब जब चला
मुझपे लग गया इल्जाम, मत पूछिये.....
मेरा सच ठोकर पर, ठोकरें खाता रहा
झूठ को ही मिला इनाम, मत पूछिये.....
चंद दिनों में वो, अमीर-ए-शहर हो गया
बन्दा क्या करता है काम, मत पूछिये.....
सूली चढ़ा दिया ना, शहर के बींचो बीच
नादान हौसले का अंजाम, मत पूछिये.....
लो अपनों को एक एक, राज बता बैठा
मैं भी हो ही गया बदनाम, मत पूछिये.....
अब इबादत पर भी, सयासी हक़ हो गया
सजदा भी कर दिया हराम, मत पूछिये.....