सोमवार, 19 सितंबर 2011

चाँद पर्दा हटा...



रातो को अक्सर सोचता हू, बालो को अक्सर नोचता हू
क्या नाम दू, क्या नाम दू, इस रिश्ते को मैं  सोचता हू

ओ जाना हुई क्या खता , जरा हमें भी बता
ओ जाना हुई क्या खता जरा हमें भी बता
सब हार दू, सब हार दू,मै तेरे सदके वार दू
मुझे  ऐसे ना सता, ओ जाना हुई क्या खता

चलता अक्सर सपनो में,ढूढू  तुझको अपनों में
मेरी जान तू, पहचान तू,मेरा धर्म तू ईमान तू
चाँद पर्दा हटा,ओ जाना हुई क्या खता......

चंदा की चादनी तू,सूरज की रौशनी तू,
तू झरनों का पानी है, रागों की रागनी तू 
तू दूर है है तू नूर है,दिलवालों में मशहूर है
कभी तो  नजरे मिला, ओ जाना हुई क्या खता.
ओ जाना हुई क्या खता , जरा हमें भी बता

रातो को अक्सर सोचता हू, बालो को अक्सर नोचता हू
क्या नाम दू, क्या नाम दू, इस रिश्ते को मैं  सोचता हू...........

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना" 



मेरी सहेली बन जा ऐ जिंदगी,



मेरी सहेली बन जा  ऐ जिंदगी,
कभी तो करीब आजा ऐ जिंदगी
कभी तो नज़र मिला जा ऐ  जिंदगी.
ऐ जिंदगी ऐ जिंदगी ऐ जिंदगी............

मेरे गमो में कभी सावन सी रो दे तू
मेरे जीवन में कभी ख़ुशी बीज बोदे तू
मेरे नैनो को भीगा जा ऐ जिंदगी
ऐ जिंदगी ऐ जिंदगी ऐ जिंदगी........

कभी रूठ मुझसे कभी मै मनाऊ
जो तू हो संग मेरे बस मै चलता जाऊ
मेरी हर खता भुला जा ऐ जिंदगी 
ऐ जिंदगी ऐ जिंदगी ऐ जिंदगी......

मेरी सहेली बन जा  ऐ जिंदगी, मेरी सहेली बन जा  ऐ जिंदगी,

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


मंगलवार, 6 सितंबर 2011

मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी..........

मुझसे क्यों खेलती है जिंदगी?
क्या मुझे झेलती है जिंदगी?
सच कहू मुझको लगता है
मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी


नन्हे कदम, जग नया नये रिश्ते
सांचो मे ढलते हम, हम से बदलते रिश्ते
दूर के रिश्ते पास के रिश्ते
रिश्तो मे उलझकर निकलते से रिश्ते


क्या बस रिश्तो को समेटती है ज़िंदगी..
सच कहू मुझको लगता है
मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी



रोती  खुशी, हसती खुशी, चिल्लती खुशी, बलखाती खुशी
बाहो मे भरकर, गले से लिपटकर
अपनो का अहसास कराती खुशी


फिर आँख मिचौली क्यू खुशी से खेलती है ज़िंदगी?
सच कहू मुझको लगता है
मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी




आनी मौत बचकानी मौत,शमशानी मौत, अंजानी मौत पहचानी मौत
मौत से लड़ते लड़ते एक दिन आ जानी मौत
बहुत खुशनसीब होते है है वो नसीब वाले
जिन्हे नसीब होती है रूहानी  मौत


हर चौराहे पर है मौत खड़ी, बस उसे ठेलती  है ज़िंदगी?
सच कहू मुझको लगता है,,मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी
सच कहू मुझको लगता है...मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी..........


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


"प्रभात" का उजाला है आज



दरिया दिल मे, पत्थर सा ख्वाब डाला है आज,,
जीत को पाया, हार को हरा डाला है आज,
हस रहे थे जो, निशा से जब डरा था मैं
खबर दो कोई उन्हे, "प्रभात" का उजाला है आज


पहला वास्ता मासूम का, परछाईयो से था,
नन्हे थे कदम और चढ़ना, उचाईयो पे था
माना की मावस की रातो मे, डर गया था मैं
क्यूकी चाँद सा मैं रहता, तन्हाइयो मे था


लड़ कर हालात से, क्या कर डाला है आज
जीत को पाया, हार को हरा डाला है आज,
हस रहे थे जो निशा से, जब डरा था मैं
खबर दो कोई उन्हे, "प्रभात" का उजाला है आज
खबर दो कोई उन्हे, "प्रभात" का उजाला है आज


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"