मंगलवार, 6 सितंबर 2011

"प्रभात" का उजाला है आज



दरिया दिल मे, पत्थर सा ख्वाब डाला है आज,,
जीत को पाया, हार को हरा डाला है आज,
हस रहे थे जो, निशा से जब डरा था मैं
खबर दो कोई उन्हे, "प्रभात" का उजाला है आज


पहला वास्ता मासूम का, परछाईयो से था,
नन्हे थे कदम और चढ़ना, उचाईयो पे था
माना की मावस की रातो मे, डर गया था मैं
क्यूकी चाँद सा मैं रहता, तन्हाइयो मे था


लड़ कर हालात से, क्या कर डाला है आज
जीत को पाया, हार को हरा डाला है आज,
हस रहे थे जो निशा से, जब डरा था मैं
खबर दो कोई उन्हे, "प्रभात" का उजाला है आज
खबर दो कोई उन्हे, "प्रभात" का उजाला है आज


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


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