दुप्पटे का इशारा है क्या साहिल पास आने के लिए,
फिर जलेगा कोई परवाना, तेरी महफ़िल सजाने के लिए......
ना नाम दू जादूगरी तो क्या, कहू इस अदा को
बेकरार है हुजूम, तुझसे नजरे मिलाने के लिए..........
अपने हुस्न को शमशीर बनाना, बेकार है तेरा,
हम तो पहले ही खड़े है, सब कुछ लुटाने के लिए..........
घुला घुला सा है जहर, तेरे शहर की फिजाओं में,
राज़ी कोई फिर भी नहीं, तुझसे दूर जाने के लिए ........
शबनमो के पहरे ने भिगो दिया कफ़न मेरा,
कोई दूंढ़ लाओ उसकी नज़र, मुझको जलाने के लिए..........
-----------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
5 टिप्पणियां:
bhut khoob prbhat g
Aapki sabhi rachnaye bahut achi hai.
Aapki sabhi rachnaye bahut achi hai.
my god yaar.......iss shayri ne to fizaon ko shabnami bana diya..
BHAI TUSSI GREAT HO YAR
REALLY
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