ये तेरी आँखों का नशा है, या मेरी मय की गुस्ताख़ी,
मुझे अपना ईमान कुछ, बदला बदला सा नज़र आता है........
कभी इस कदर ना गिरे मेरे ख्यालात, तेरे मैखाने में,
आज मुझे ये जाम कुछ, बदला बदला सा नज़र आता है.......
शराब और शबाब का, मेल ही कुछ ऐसा है "प्रभात"
की हर इंसान कुछ बदला बदला सा नज़र आता है...........
मेरे हालात गवाह है, मेरी दुआ नाकबूल हुई,
मुझे मेरा भगवान् कुछ, बदला बदला, सा नज़र आता है........
हाथो में खंजर लेकर खड़े है सभी, सरे-आम चौराहों पर,
क्या दिवाली, क्या रमजान सब कुछ, बदला बदला नज़र आता है
क्या दिवाली, क्या रमजान सब कुछ बदला बदला नज़र आता है...........
कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
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