गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

एक तमाशा बना फिरता हूँ मैं, गली गली यारो....


जब मेरा सनम मेरे पास होता है,
मुझे हुबहू खुदा का एहसास होता है,
ये दुनिया बेनूर तारों सी चमकती है,
और आसमां के चाँद सा वो ख़ास होता है.........

बेदखल कर दो मुझे रोता, मगर जानो,
बहते आसुओ के बीच वो, मुस्कान होता है,

क्या आगाज समझोगे, क्या अंजाम जानोगे,
मेरा दायरा-ए-मोहब्बत, पूरा आसमान होता है,

अक्सर हुजूम मद में, देता है मुझे ताने,
और जब खुद पर बीतती है, तब हैरान होता है,

एक तमाशा बना फिरता हूँ मैं, गली गली यारो,
क्यूंकि हर पागल आशिक का यही अंजाम होता है
क्यूंकि हर पागल आशिक का यही अंजाम होता है.................


                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 





1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

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