सोमवार, 28 नवंबर 2011

इतना निष्ठुर ना हो, की पत्थर बन जाए...


इतना निष्ठुर ना हो, की पत्थर बन जाए,
बद है कही, बदत्तर बन जाए,
खुदा के खौफ से, डर कभी पापी,
कही आंधियो में उड़ता, कत्तर बन जाए

मखमली राहो पर, ध्यान से चल,
कही चूक हो, और खद्दर बन जाए

जा लगे ले, हर काफिर को गले,
दुआ हो तेरी उसका, मुक्कदर बन जाए

मन पाक हो तो क्या, मुश्किल है जहां में
तेरा रुमाल किसी मज़ार की, चद्दर बन जाए



                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




कोई टिप्पणी नहीं: