एक छोटी सी बात पर परिवार बदलते देखे है,
जरुरत पड़ी तो सब रिश्तेदार बदलते देखे है,
यकीन सा उठ चला हर शख्स से "प्रभात"
मैंने अक्सर अपनों के किरदार बदलते देखे है......
जितना दिया खुदा ने, उतनी हवस बढ़ी
आये दिन लोगो के व्यापार बदलते देखे है.....
कल खबरों में छा जाना था, तेरे नापाक इरादों को
कुछ गड्डी दे के नोटों की, अखबार बदलते देखे है......
लो आ गए वो भी मेरी बदनाम महफ़िल में,
अरे हमने बड़े बड़े इज्जतदार बदलते देखे है.......
किस सरगम-ऐ-सांस पर जीवन दे "परवाना "
दो दो कौड़ी की खातिर फनकार बदलते देखे है.......
--------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
4 टिप्पणियां:
नमस्कार, गजल बहुत सुंदर लगी, लेकिन फ़ोटो गजल की बगल मे हो तो ज्यादा सुंदर दिखेगी नीचे जंचती नही, आप फ़ोटो का साईज थोडा छोटा कर के राईट साईड मे गजल के संग लगाये,पोस्ट ओर भी सुंदर लगेगी. धन्यवाद
bahut badhiya...
mai bhi raj bhatiya ji ki baat se sahmat hun
nice i wery wery like it
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