सोमवार, 17 नवंबर 2014

बेटी को ना गर्भ में मारो....


बेटी नारायण सेवा है, बेटी पुण्यो का मेवा है
सावन भादो मॉस है बेटी, जीवन का आभास है बेटी

बेटी नभ का पता है, बेटी आशा है, लता है
बेटी वंदना है, पूजा है , बेटी दौड़ती उषा है

बिन बेटी ये दुनिया मौन है, बेटी में हीमैरी कॉम है
बेटी कुल का मान बढ़ाती, बेटी वायुयान उड़ाती

बेटी रामायण गीता है, बेटी में एक युग जीता है
त्याग तपस्या भाव है बेटी, एक मधुर सा राग है बेटी

बेटी वेदो की परिभाषा है , बेटी ही भाग्य विधाता है
बेटी झरनो सी पावन है, बेटी से ही अपनापन है

वीणा की झंकार है बेटी, आँगन का श्रृंगार है बेटी,
कंघन की खनखन है बेटी,बेटा चंदा, चन्दन बेटी

उपवन की तितली है बेटी, नदियों की मछली है बेटी,
बेटी सागर की गहराई है, बेटी अम्बर की ऊंचाई है,

मात पिता का बल है बेटी, जीवन में मंगल है बेटी
बेटी बेटे की राखी है, लंग़डेपन की बैसाखी है

भैयादूज का टीका बेटी, कड़वेपन में मीठा बेटी
बेटे हक़, हकदार है बेटी, नवरात्रों का त्यौहार है बेटी

बेटी दो दो घर की लाज है,ज़िम्मेदारी का आभास है
कहीं बेटी रिक्शा खींच रही है, पूरे कुल को सींच रही है

कही गर्भ में मरती बेटी, जग में आकर मरती बेटी,
इस पल से ही भूल सुधारो, बेटी को ना गर्भ में मारो,

बेटी में एक अंश पलेगा, बेटी से ही वंश चलेगा
बेटी में एक अंश पलेगा, बेटी से ही वंश चलेगा


        कवि प्रभात "परवाना"
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