बुधवार, 21 दिसंबर 2011

नशे में जमाना , ज़माने में हम भी .........


नशे में जमाना , ज़माने में हम भी,
कुछ इल्जाम हम पर भी आने दो ,

जो बेखबर है इस नशे से और नशे की दुनिया से ,
मत रोको उसे, मैखाने से दूर जाने दो ,

अंगूर की बेटी पक कर तैयार खड़ी है साकी,
जरा उसे पैमाने में सज जाने दो ,

सुना है सर्द हवाए , ईमान बदल देती है ,
एक झोका सनम , हमें भी खाने दो ,

उसका एक आंसू मुझे, उसके पास ला देगा ,
हटो यारो मुझे उसे, एक बार रुलाने दो ,

बहुत गुरूर है उसे अपनी एक एक अदा पे
आज मौका है, जरा मुझे भी आजमाने दो,

नशे में जमाना , ज़माने में हम भी ,
कुछ इल्जाम हम पर भी आने दो ...........

-------------------------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


6 टिप्‍पणियां:

Sanju Pant ने कहा…

अति उत्तम

divyanshu singh ने कहा…

waaaahhh !!!!!!! kya baat hai bahut sundar mitra bahut sundar...

healthynutrition ने कहा…

very nice kavita

बेनामी ने कहा…

TRUELY SEDATIVE POEM

ashish sharma ने कहा…

बहुत अच्छा भाइ प्रभ्ाात

ashish sharma ने कहा…

अापके उत्साह काे देख कर बहुत अच्छा लगा