नशे में जमाना , ज़माने में हम भी,
कुछ इल्जाम हम पर भी आने दो ,
जो बेखबर है इस नशे से और नशे की दुनिया से ,
मत रोको उसे, मैखाने से दूर जाने दो ,
अंगूर की बेटी पक कर तैयार खड़ी है साकी,
जरा उसे पैमाने में सज जाने दो ,
सुना है सर्द हवाए , ईमान बदल देती है ,
एक झोका सनम , हमें भी खाने दो ,
उसका एक आंसू मुझे, उसके पास ला देगा ,
हटो यारो मुझे उसे, एक बार रुलाने दो ,
बहुत गुरूर है उसे अपनी एक एक अदा पे
आज मौका है, जरा मुझे भी आजमाने दो,
नशे में जमाना , ज़माने में हम भी ,
कुछ इल्जाम हम पर भी आने दो ...........
-------------------------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
6 टिप्पणियां:
अति उत्तम
waaaahhh !!!!!!! kya baat hai bahut sundar mitra bahut sundar...
very nice kavita
TRUELY SEDATIVE POEM
बहुत अच्छा भाइ प्रभ्ाात
अापके उत्साह काे देख कर बहुत अच्छा लगा
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