शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

प्यासे ही रह जाते है मय पिलाने वाले......


आये दिन जो देते है ज़माने वाले,
वो हर जख्म नहीं होते दिखाने वाले,
यकीन ना हो तो कभी घर में ध्यान में देना,
खुद भूखे रह जाते है, तुमको खिलाने वाले.............

कभी साथी नहीं मिलता, कभी साकी नहीं मिलता,
और प्यासे ही रह जाते है, मय को पिलाने वाले......

दरियादिली मेरी जो समझी, तो लगभग टूट जाओगे,
कैसे तन्हा रह जाते है, किसी को मिलाने वाले........

इबादत का हर दस्तूर यही बयाँ करता है सनम,
खुद लाश बन कर घूमते है, मुर्दे जिलाने वाले............

जिस दिन भी निखारेंगे, हम खुद को दिलनशी,
फिर देखते ही रह जाएंगे, जुल्फे हिलाने वाले............

उनकी अजान भी, क्या रंग लायी है आज,
लो रस्ता भटक गए है मंजिल बताने वाले..........

बंद कमरों का मंजर सिर्फ आइनों ने देखा है,
घुट घुट रुक कर रोते है, खुलकर हँसाने वाले...........

मेरी लाश और चिता पर नज़रे कड़ी रखना,
कहीं हाथ ना जला बैठे, मुझको जलाने वाले
कही हाथ ना जला बैठे, मुझको जलाने वाले..............



                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




1 टिप्पणी:

poonam ने कहा…

bhut khub prabhat ap bhut acha likhte hai ...............:)