जो तूफानों से खेलते है उन्हें, हवाओं से डर नहीं लगता
जो समंदर में पलते हो उन्हें घटाओ से डर नहीं लगता,
हर ठोकर से कुछ सीख कर गुजरा हूँ मैं,
अब मुझे मार कर सिखाने वाले रहनुमाओं से डर नहीं लगता
अब मुझे मार कर सिखाने वाले रहनुमाओं से डर नहीं लगता........
जश्न-ए-इजहार क्या ख़ाक होता जब बात कुछ बढ़ी नहीं,
कभी नशे में वो रहे, कभी नशे में हम रहे...........
एक कतरा बन कर समंदर पर सवार हूँ तेरे लिए,
सुना है- "डूबते को तिनके का सहारा बहुत होता है".........
मेरी फकीरी मेरे किरदार की खता है यारो,
मेरी फकीरी मेरे किरदार की खता है यारो,
"मेरी जिंदगी नहीं, जिंदादिली ने ठगा है मुझे......."
पत्थरो से रस निकाला नहीं जाता,
फूलो पर वजन डाला नहीं जाता,
घर के चौबारे तक ही रहे, तो खूब जँचती है,
तितलियो को घर में पाला नहीं जाता
तितलियो को घर में पाला नहीं जाता .........
कवि प्रभात "परवाना"
5 टिप्पणियां:
so nice sir
बहुत सुन्दर सर
aapki kavita ke bare me ya bkahna sir
आपकी कविता ने मुझे आपका दीवाना बना दियाःक्या कहे आपको आप ने ही तो हमेँ परवाना बना दियाः
behtreen rachnakar hai aap...bahut sunder kvita
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