शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

तितलियो को घर में पाला नहीं जाता .........


जो तूफानों से खेलते है उन्हें, हवाओं से डर नहीं लगता
जो समंदर में पलते हो उन्हें घटाओ से डर नहीं लगता,
हर ठोकर से कुछ सीख कर गुजरा हूँ मैं,
अब मुझे मार कर सिखाने वाले रहनुमाओं से डर नहीं लगता
अब मुझे मार कर सिखाने वाले रहनुमाओं से डर नहीं लगता........

जश्न-ए-इजहार क्या ख़ाक होता जब बात कुछ बढ़ी नहीं,
कभी नशे में वो रहे, कभी नशे में हम रहे...........

एक कतरा बन कर समंदर पर सवार हूँ तेरे लिए,
सुना है- "डूबते को तिनके का सहारा बहुत होता है".........


मेरी फकीरी मेरे किरदार की खता है यारो,
मेरी फकीरी मेरे किरदार की खता है यारो,
"मेरी जिंदगी नहीं, जिंदादिली ने ठगा है मुझे......."

पत्थरो से रस निकाला नहीं जाता,
फूलो पर वजन डाला नहीं जाता,
घर के चौबारे तक ही रहे, तो खूब जँचती है,
तितलियो को घर में पाला नहीं जाता
तितलियो को घर में पाला नहीं जाता .........



                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




5 टिप्‍पणियां:

nishu ने कहा…

so nice sir

कवि मेघश्याम पण्डित 'मेघ' ने कहा…

बहुत सुन्दर सर

mahesh ojha ने कहा…

aapki kavita ke bare me ya bkahna sir

बेनामी ने कहा…

आपकी कविता ने मुझे आपका दीवाना बना दियाःक्या कहे आपको आप ने ही तो हमेँ परवाना बना दियाः

बेनामी ने कहा…

behtreen rachnakar hai aap...bahut sunder kvita