बुधवार, 9 नवंबर 2011

अक्सर तन्हा राते मुझे बुलाती है ......


अक्सर तन्हा राते मुझे बुलाती है
आसमा अपने आगोश में आने को पुकारता है ,
खामोशी एक गुहार सी लगाती है
जैसे जैसे फिजाए मुझे छूकर जाती है एक अजीब सा नशा छा जाता है
वो सी सी करते पत्तो की आवाज़े मानो मुझे कुछ राज बताना चाहती हो,
वो तन्हा चाँद मुझसे मेरा साथ मांग रहा हो,
जैसे कह रहा हो मैं भी अकेला हूँ इन तारो की भीड़ में,
आ मेरे पास आ, अपने जज्बात बयां कर ..
मेरे कदम जाने मुझे खींच कर जाने कहा ले जाने को बेताब होते है..
इस दुनिया और भोतिक्तावाद से दूर, बहुत दूर
एक अलग दुनिया में, खामोशी की दुनिया में
जहा खामोशी खामोशी से बाते करती है, जवाब, सवाल शिकवे, रूठना मनाना
सब कुछ ख़ामोशी की भाषा में ही होता है,...
सब कुछ जी हाँ सब कुछ.........................................



                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद ख़ूबसूरत, शानदार और ज़बरदस्त लिखा है