शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

चुल्लू भर ख़ुशी को चिढाने के लिए............


गैरों से नहीं, अपनों से रौंदा गया हूँ मैं
खंजरो से नहीं, निगाहों से गौंदा गया हूँ मैं,
वक़्त ने आजमाईश, इस कदर की"प्रभात"
जितना हँसाया गया, उतना रोता गया हूँ मैं......

निशाओ में गुमराह होना, आम है हुज़ूर,
ताजुब्ब है "प्रभात" में, खोता गया हूँ मैं.....

मरहम पर मरहम, लगे है कतार में,
पर हर जख्म को नमक से, धोता गया हूँ मैं..............

काफिर की दुआओं का, असर ही कहो,
की मुर्दों की शक्ल में, सोता गया हूँ मैं.............

चुल्लू भर ख़ुशी को, चिढाने के लिए,
गम का एक समंदर, होता गया हूँ मैं.........


                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 





1 टिप्पणी:

नीरज द्विवेदी ने कहा…

Waow ... Sirf dikhawe ke liye hi ham na jane kitni khushiyon ki bhent chada dente hain.

Bahut sundar bhavpoorn prastuti.
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