गुरुवार, 1 मई 2014

हौसले का अंजाम मत पूछिये.....


ये किसने भेजा है पैगाम, मत पूछिये
किसका ख़त है मेरे नाम, मत पूछिये
मोहब्बते बाँटने घर से, जब जब चला
मुझपे लग गया इल्जाम, मत पूछिये.....

मेरा सच ठोकर पर, ठोकरें खाता रहा
झूठ को ही मिला इनाम, मत पूछिये.....

चंद दिनों में वो, अमीर-ए-शहर हो गया
बन्दा क्या करता है काम, मत पूछिये.....

सूली चढ़ा दिया ना, शहर के बींचो बीच
नादान हौसले का अंजाम, मत पूछिये.....

लो अपनों को एक एक, राज बता बैठा
मैं भी हो ही गया बदनाम, मत पूछिये.....

अब इबादत पर भी, सयासी हक़ हो गया
सजदा भी कर दिया हराम, मत पूछिये.....


        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:-  www.prabhatparwana.com



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