देखो मै चलते चलते ठोकर खा गया,
उठा फिर चला मगर लगड़ा गया
गम दुनिया को ये नहीं की मै लंगड़ाता हूँ.
गम तो ये है की फिर भी मुस्कुराता हूँ
गम बस यही होता तो फिर बात ही क्या थी,
गम तो ये है की
चलकर, गिरकर, उठकर, लंगड़ाकर हौले से मुस्कुराकर
और फिर दौड़ जाता हूँ
"दुनिया के गम देखकर शर्मिंदा हू यारो
आज निशा है कल "प्रभात" होगा, इसीलिए जिंदा हू यारो"
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना "
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