सोमवार, 14 मार्च 2011

दिया बोला चाँद से


एक दिया चाँद से बोला: तुझमे तो दाग है,
चाँद बोला तू कौन सा बेदाग़ है,
दिया बोला तू कुछ ख़ास नहीं पर्वत का डेला है,
चाँद बोला: अपने नीचे देख दीपक तले अन्धेरा है,
दिया गुस्से में घुर्राया: मेरा नूर जहान रोशन कर रहा है,
चाँद बोला: हर परवाना तेरे आगोश में जल रहा है,
दिया: ये तो मेरे परवाने है क्या कहू.
चाँद: मेरे भी दीवाने है क्या कहू.
दिया बोला मै एक हू कई जला सकता हू
चाँद बोला: मै समुद्र का पानी उठा सकता हु.
दिया: दिवाली का मै राजा हू, तू गुमनाम होता है,
चाँद बोला:शरद पूर्णिमा पे बस मेरा काम होता है.
दिया बोला चल भुला के गिले, फिर आ मिले,
चाँद: हट  तेरी मेरी दोस्ती तू क्या भांग पिए है.
दिया:तू घमंडी है इसीलिए खुदा ने  तुझे दाग दिए है.... 

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"




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