बुधवार, 16 मार्च 2011

शब्द मेरे दर्द मेरा


नीयत बुरी हो तो अपराध पूरा होता है,
रंजिश हो पुराणी तो  अफ्साद पूरा होता है,
नहीं मोहताज कोई मृत किसी के अहसान का,
श्रद्दा हो मन से तभी श्राद पूरा होता है,

वो भूलते चले सीखने की चाह में,
वो हारते चले जीतने की चाह में,
जूनून था सर सवार मुझे पाने के इस कदर,
वो बिकते चले मुझे खरीदने की चाह में.

जलजला तेरी आँखों का मुझे बेनूर कर गया,
मेरी रूह को मेरे हुस्न से दूर कर गया,
आबाद रहे खुशिया तेरी मेरे बाद भी,
खुदा को ये कसम देके मजबूर कर गया.

आ गए फिर तन्हाइओ  की महफ़िल में गम-इ--जाम लेकर,
फिर वाही दर्द भरे किस्स्सो से भरी शाम लेकर,
नूर से है जिसके जहा रोशन हर कारवा रोशन,
चल फिर जमाये महफ़िल उसका नाम लेकर.

वो दूर क्या हुए खुद को गुमशुदा कह बैठा,
हर खुशी हर गम से खुद को जुदा कह बैठा,
इनके अंदाज ही  कुछ ऐसे थे क्या बया करू,
खुदा खुद उन्हें अपने खुदा कह बैठा.

खुदा कसम मै मरने जा रहा हु
. खुदा  कसम कुछ करने जा रहा हू
उची सही तेरे प्यार की सीढ़ी मगर
लगड़ा हू तो क्या हुआ, चढ़ने  जा रहा हू 

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




कोई टिप्पणी नहीं: