निकला था कुछ जल्दी लेकर,
निज हाथो में हल्दी लेकर,
सोचा मौज मनाऊंगा मै,
ले दे के खुशिया आऊंगा मै,
रास्ता कुछ जब पार लिया था,
कुछ लोगो का दीदार किया था,
आपस में सब गले मिले थे,
पर मन में सबके बैर पाले थे,
सुने सुने घर कुछ पाए,
हवे ने मद्धम गीत सुनाये,
हाय ये होले कहा गयी,
घर की रंगोली कहा गयी,
वो फूलो वाली मार खो गयी,
पिचकारी की धार खो गयी,
दुःख और दुःख ही पाऊंगा क्या,
सूखा ही रह जाऊँगा क्या,
कही सत्य ये किस्सा हो ना,
मुझसे रंग लो, मुझको रंग दो ना,
दिल दुनिया का नर्म कहा जी,
लोगो को अब शर्म कहा जी,
वक़्त गया और क्रोध गया जब,
सूखा ही घर लौट गया तब.
प्रभात कुमार भारद्वाज
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें