मेरे घर की रौनक कहा गयी, मेरे घर की खुशिया कहा गयी,
वो पायल की छम छम कहा गयी, चेहरे की चमचम कहा गयी,
वो नह्न्ही ऊँगली कोमल आँखे, वो छोटी बाते लम्बी बाते, बातो पे बाते,
वो नोकझोक वो खीचातानी, गुड्डे गुडिया खेल कहानी,
वो उलटे सीधे तर्क लगाना, गोलगप्पे की शर्त लगाना,
दिन जाने कैसे जल्दी बीते, वो शहनाई वो हल्दी टीके,
वो नन्ह्नी गुडिया कहा गयी, वो छोटी ऊँगली कहा गयी,
ओढ़ चुनरिया गोटे वाली, वो हर पल में मुस्काने वाली,
वो चुप थी पर आसू बोले, ह्रदय भेद बूंदों ने खोले,
तन चाहे मेरा जहा रहेगा, पर मन तो मेरा यहाँ रहेगा,
बेटी घर से विदा हो गई, खुशिया घर से जुदा हो गई,
वो चंचलता, मुस्कान खो गई, दीवारे बेजान हो गई,
प्रश्न पूछते चाबी ताले, घड़ियो के नीचे लटके जाले,
वो कमरा गुस्से में घुर्राया, छोड़ कहा पे उसको आया,
जवाब इन्हें मै कैसे लाता,अमानत मै कब तक रख पाता,
टिक टिक टिक टिक बाट निहारु, बार बार यही प्रश्न पुकारू
मेरे घर की रौनक कहा गई, मेरे घर की खुशिया कहा गयी
प्रभात कुमार भारद्वाज
9555133845
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