धुए को धुम्रपान कराते है देखिए,
गंगा जी को स्नान कराते है देखिए,
यहाँ तक भी ठीक था मजाल जो करी,
"प्रभात" को अंधेरो से डराते है देखिए
धुए धुए सा है "प्रभात" आज क्यों ?
दिल में उसके मचा है उत्पात आज क्यों?
फिजा के झरोखे से चाहा जिन्दगी में फिर आएगी बहार शायद
पर बेफवा सा लगता है उसका प्यार आज क्यों?
जलते जलते परवाना ये सोचता होगा,
अपने पागल दिल को यु कचोटता होगा,
जख्म की आदत हो और फिर जख्म न मिले,
वो फिर पुराने जख्म को कुरेदता होगा
मेरे बहुत दुश्मन है, दोस्तों संभल के चलो,
वो जो सफ़ेद चुन्नी ले के चल रही है कफ़न तैयार है मेरा,
मै वो दरिया नहीं जो तेरा पत्थर खा जाऊ प्यार से,
मै वो छीटा हू जो उछल के मुह पे लगता है..
"अक्सर लोग मुझसे यही सवाल करते है ,
मेरी हर ख़ुशी पर मलाल करते है,
कहा से मिला रोशनी का पता
प्रभात से पूछते है , आप भी कमाल करते है. आप भी कमाल करते है."
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
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