दर्द ए दिल का तोहफा तेरा कबूल करता हू आराम से
उसके सितमो का ब्योरा दू अब तो डर सा लगता है उसके नाम से,
होश जो जो है खो जाए वो सभी,
हमें भी रू-ब-रू करो, किसी ऐसे जाम से
जब से वो दिल को तोड़ गए, हालत-ए-गम बस छोड़ गए,
बस पी रहा रहा हू मै, उसी ही शाम से
मै तेरा क्या दुःख लेता, मै तुझको कितना सुख देता,
कुछ भी ना दे सका तुझे, सिवाय अपनी जान के.
गैरो की क्या बात करू, अपनों ने दिल को रौदा है,
अब तो नफरत सी हो गयी है अपनों के नाम से.
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
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