चाँद तुम्हे देखकर शर्माता तो होगा,
तुम्हारे हुस्न से जलन खाता तो होगा,
निकलते होगे जब आप रात में कभी कभी,
आपकी चांदनी में वो नहाता तो होगा,
फिर खुदा से सवाल करता तो होगा,
कुछ गुस्सा कुछ बवाल करता तो होगा,
जलकर आपके हुस्न से चाँद भी कभी कभी,
अपनी किस्मत पे मलाल करता तो होगा
फिर एक नयी जफा हो जाएगी आपसे,
किसी गैर पर फिर वफ़ा हो जाएगी आपसे,
इस रात को घर से न निकल जालिम,
चांदनी फिर खफा हो जाएगी आपसे
खुदा ने चाँद बनाया तो होगा,
आसमा तारो से सजाया तो होगा,
क्यों नूर भी बेनूर लगता है आपके सामने,
ये राज आपको बताया तो होगा
मौत से भीख मांग आऊंगा मै,
हर हद से गुजर जाऊंगा मै,
जन्नत की हर खुशी उसपे कुर्बान,
अपने चाँद की मांग तारो से सजाऊंगा मै,
तेरी इच्छा उसे पाने की होती तो होगी,
उसकी खातिर मरजाने की होती तो होगी,
ग्रहण जैसा कुछ नहीं होता हुजूर,
वो उस रात मुह ओढ़ के सोती होगी,
चाँद को चांदनी पे गुरूर दिखा आज
परवाना तक शम्मा से दूर दिखा आज
हुकूमत ही कुछ ऐसी है मेरे चाँद की जहाँ पे,
नूर ए खुदा भी बेनूर दिखा आज
जबान मेरी कुछ कुछ कहती है संभालो
सितारों की दुनिया मांग में रहती है संभालो
चाँद आप खुद हो और क्या कहू,
चांदनी दुप्पटे से बहती है संभालो
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
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