गुरुवार, 2 जून 2011

बन ही जाओगे, या मिट ही जाओगे..

दूर हूँ जग से ,जग की तन्हाई से
जब से प्यार हुआ है मुझे, अपनी ही परछाई से,

दौलत वाले गैर को, मनाने चल दिए
किसी को क्या फर्क, मेरे गम मेरी रुसवाई से,

ये शौक आप ही, शौक से पालिए
हमें तो डर लगता है, भीड़ और शहनाई से

कुछ राज दफ़न है, संकेत है हवा
 लाशें गिन लीजिये, झांक के खाई में

बन ही जाओगे, या मिट ही जाओगे
 उतर के देखना, मेरे दिल की गहराई में

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
   

3 टिप्‍पणियां:

Rahul Yadav ने कहा…

bohot khoob janab.. ban hi jaoge ya mit hi jaoge__ utar k dekhna..... nice lines

satish sharma yashomad ने कहा…

भावों व शब्दों की सुंदर अभिव्यक्ति ...!!!

SARITA ने कहा…

"kuchh raaj dafn hai sanket hai hawa.lash gin lijie jhank ke khai mein" FANTASTIC LINES IN THE POEM.. WEL EXPRESSED.