मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

समंदर का सफ़र देख लेंगें.....


हौसला आजमा कर मुकद्दर भी लेंगे
कश्ती पे तूफां का, असर भी देख लेंगे
दरिया भी हमने, तनहा ही नापा था
हम समंदर का, सफ़र भी देख लेंगें.....

दर दर पर भटकते, फिरे है उम्र भर
एक तेरा बचा है, ये दर भी देख लेंगें
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आज दुश्मन के हाथ, दवा देखी है
अब दोस्त के हाथ पत्थर, भी देख लेंगें
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चलो सो जाते है, कफ़न ओढ़ कर
इस बहाने खुदा का, घर भी देख लेंगें
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        कवि प्रभात "परवाना"
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