सोमवार, 28 दिसंबर 2015

गंगा किनारे वाले की डायरी : लकीरे (भाग -2)


गंगा किनारे वाले की डायरी : लकीरे (भाग -2)

याद है गंगा किनारे कई बार तुमने हाथ देखने के बहाने मेरा हाथ अपने हाथो में लिया था।
हाथ की आड़ी तिरछी रेखाओ से सफर करते आँखों के मोती साहिल पर आकर ठहर जाते।
उन आँखों में एक बादल का टुकड़ा था, जो बरसना चाहता था मगर हर बार तुम पलकों पर पहरा लगा देते।
शायद उस बादल में एक तिश्नगी थी, एक प्यास थी, जो तुम्हारे होठो के पनघट पर कुछ देर सुस्ताना चाहती थी

कभी समझ नहीं पाया की आखिर उन रेखाओ में क्या तलाशती हो तुम?
सवाल जैसी रेखाओ से जाने कौन कौनसे जवाब माँगती थी तुम?
मेरी हथेली पर टेढ़ी मेड़ी गलियो जैसी ये लकीरे क्या दे सकती थी तुम्हे?
ये लकीरे खुद अपना हासिल ढूढ़ते हुए, एक बुझे हुए छोर पर आकर खत्म हो जाती है

हिम्मत करके जिन हाथो को तुम पकड़ते थे, उसे हया के पहरेदार पल भर में अलग कर देते।
एक अल्हड़पन था तुम्हारे अंदर जैसे कबीर के दोहे, एक तन्मयता थी तुम्हारे अंदर जैसे मीरा के भजन हो, एक अपनापन था तुम्हारे अंदर जैसे रसखान के सवैये हो

गंगा माँ आज भी वहाँ से निकलती हैं वो भी अब पहले जैसी नहीं रही, वक़्त के आंधियो ने गंगा और इंसान दोनों को गहरे जख्म दे दिए है।
मैं आज भी वहाँ जाता हूँ पर, अब उस जगह कोई हाथ देखने वाला नही है, ना किसी की आँखों में प्यास है ना व्यवहार में अपनापन, और ना बोली में अल्हड़पन...

सब कुछ बदल गया है, अब सब कुछ बदल गया है..........


        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com


बुधवार, 9 दिसंबर 2015

कब अच्छा दिन आएगा?....


भूखी अंतड़ियोँ को किस दिन, एक निवाला जाएगा
और चुनावी वादो का कब, कर्ज उतारा जाएगा

बच्चा बच्चा पूछ रहा है, कब अच्छा दिन आएगा?....

सबसे ऊँची कुर्सी पाकर, अंहकार में फूल गए?
राम का मंदिर बनवाऊंगा, वादा शायद भूल गए
गंगा तट पर दोहराई जो, सारी रस्मे याद करो
छप्पन इंची सीने वाली, सारी कसमे याद करो

और किसानो के घर में, कब तक अँधियारा छाएगा?
सरहद पर कब तक फौजी का, शीश उतारा जाएगा?

बच्चा बच्चा पूछ रहा है, कब अच्छा दिन आएगा?....
बच्चा बच्चा पूछ रहा है, कब अच्छा दिन आएगा?....

कब तक भारत माता यूँ ही, हाय हाय चिल्लाएगी?
डायन कहने वालो की कब, जीभ काट दी जाएगी?
बड़ी बड़ी ना दे पाओ तो, चींजे कुछ छोटी दे दो
बुलेट ट्रेन देने से पहले, भारत को रोटी दे दो

फुटपाथों पर कब तक बचपन, आसूं रोज़ बहाएगा
इंसा खूं को बेच बेच कर, कब तक खाना खाएगा

बच्चा बच्चा पूछ रहा है, कब अच्छा दिन आएगा?....
बच्चा बच्चा पूछ रहा है, कब अच्छा दिन आएगा?....


इटली वाला कुनबा कब, वापस इटली को जाएगा
10 जनपथ पर बोलो मोदी, कब भगवा लहराएगा
और कबाड़ी जीजा बोलो, कब सड़को पर आएगा
मोदी जी मत मारो कह कर, कब पप्पू चिलाएगा

कालेधन वाली चिट्ठी का, चिटठा कब खुल पाएगा
और पकड़ कर कॉलर कब, दाऊद को पीटा जाएगा

बच्चा बच्चा पूछ रहा है, कब अच्छा दिन आएगा?....
बच्चा बच्चा पूछ रहा है, कब अच्छा दिन आएगा?....


        कवि प्रभात "परवाना"
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