एक छोटी सी बात पर परिवार बदलते देखे है,
जरुरत पड़ी तो सब रिश्तेदार बदलते देखे है,
यकीन सा उठ चला हर शख्स से "प्रभात"
मैंने अक्सर अपनों के किरदार बदलते देखे है......
जितना दिया खुदा ने, उतनी हवस बढ़ी
आये दिन लोगो के व्यापार बदलते देखे है.....
कल खबरों में छा जाना था, तेरे नापाक इरादों को
कुछ गड्डी दे के नोटों की, अखबार बदलते देखे है......
लो आ गए वो भी मेरी बदनाम महफ़िल में,
अरे हमने बड़े बड़े इज्जतदार बदलते देखे है.......
किस सरगम-ऐ-सांस पर जीवन दे "परवाना "
दो दो कौड़ी की खातिर फनकार बदलते देखे है.......
--------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"