इस दस्तक पर, मेहमां भी हो सकता है
हर बार ही हवा हो, जरूरी तो नहीं.....
कसूर हालात का भी, हो सकता है
हर शख्स बेवफा हो, जरूरी तो नहीं.....
मेरे हमदर्दो में ही, बैठा है कातिल
हर लब पे दुआ हो, जरूरी तो नहीं.....
लाश पे जख्म-ए-मोहब्बत, है साहब
मेरा क़त्ल ही हुआ हो, जरूरी तो नहीं.....
उसका एक एक सितम, लाइलाज निकला
हर जख्म की दवा हो, जरूरी तो नहीं.....
माँ की आँखे भी पढ़ कर, देखिये जनाब
मस्जिद में ही ख़ुदा हो, जरूरी तो नहीं.....
हर बार ही हवा हो, जरूरी तो नहीं.....
कसूर हालात का भी, हो सकता है
हर शख्स बेवफा हो, जरूरी तो नहीं.....
मेरे हमदर्दो में ही, बैठा है कातिल
हर लब पे दुआ हो, जरूरी तो नहीं.....
लाश पे जख्म-ए-मोहब्बत, है साहब
मेरा क़त्ल ही हुआ हो, जरूरी तो नहीं.....
उसका एक एक सितम, लाइलाज निकला
हर जख्म की दवा हो, जरूरी तो नहीं.....
माँ की आँखे भी पढ़ कर, देखिये जनाब
मस्जिद में ही ख़ुदा हो, जरूरी तो नहीं.....