कांटो को सजा बिछा कर, बिस्तर बना लिया
लो हमने भी शहर-ए-ग़म में, घर बना लिया
दरिया चिढ़ाता था जिन जिन, बूंदो को कभी
उन सब बूंदो ने मिलकर, समंदर बना लिया
सबके सब रखते हो ना, संगतराशी का हुनर
लो हमने भी इस दिल को, पत्थर बना लिया
बस तेरे दो आँसुओ से बाज़ी, हार गए वरना
हमने जिसे भी चाहा उसे, मुकद्दर बना लिया
खत-ए-दोस्ती का हर पन्ना, पढ़ लिया साहब
हमने दुश्मनो को अपना, रहबर बना लिया
लो हमने भी शहर-ए-ग़म में, घर बना लिया
दरिया चिढ़ाता था जिन जिन, बूंदो को कभी
उन सब बूंदो ने मिलकर, समंदर बना लिया
सबके सब रखते हो ना, संगतराशी का हुनर
लो हमने भी इस दिल को, पत्थर बना लिया
बस तेरे दो आँसुओ से बाज़ी, हार गए वरना
हमने जिसे भी चाहा उसे, मुकद्दर बना लिया
खत-ए-दोस्ती का हर पन्ना, पढ़ लिया साहब
हमने दुश्मनो को अपना, रहबर बना लिया
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