रविवार, 24 जुलाई 2011

आसुओ ने हँसना सिखा दिया...

मेरी एक आँख मे के आसू ने दूसरी आँख के आसू से पूछा,
कैसे हो...???????


खुशी का आसू बोला: बहुत खुश हू यार, आज क्या बताउ तुझे...
तू कैसा है?
दुख का आसू बोला: बहुत दुखी हू यार.. क्या बताउ तुझे
एक शरीर एक आत्मा, एक जीवन दो सोच कैसे?
दो एहसास वो भी साथ साथ...
तब दिल बोला यही जीवन है
यही जीवन की सच्चाई है.
इंसान यदि जीना चाहे तो फड़कता है
यदि मरना चाहे तो ता तड़पता है..
अगर ये जीवन है तो ये बनाया क्यू?
भौतिक साधनो से इसे सजाया क्यू?
इंसान का मन इसमे लगाया क्यू?
भगवान बोला: मैने जीवन इसलिए दिया की तू जी सके,
दूसरे के गम विश बना शंभू की तरह पी सके.
पर तूने खुद मायाजाल बनाया.
अपना मन इसमे बसाया
आज एक बात समझ मे आई है
सही मायने मे ये दुनिया पराई है
इसीलिए
किसी को मलहम ना दे सके तो आँखे नम ना दे,
किसी को खुशी ना दे सके तो कभी गम ना दे..



"प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना" 


शनिवार, 23 जुलाई 2011

इस जहाँ में इंसान ना मिला


हिन्दुस्तान भी मिला, पकिस्तान भी मिला
कट्टर हिन्दू भी मिला, कट्टर मुसलमान भी मिला
ग़म मन में बस एक यही है दोस्तों,
इस जहाँ में एक कट्टर इंसान ना मिला

खून दंगे, लाठी गोली हर जगह मिले,
पर कही मन की शान्ति का पैगाम ना मिला

अहम् का नशा, फिर बहम का नशा
पर सत्य में डुबो दे ऐसा जाम ना मिला

राम और रहीम तो कई जगह मिले
पर सबको साधता एक भगवान् ना मिला

खुदा भी रो रहा है बट बट के देख लो
उसे इंसान से जहां में ,सही मान ना मिला

मजहब के नाम तो पल भर में रख दिए
क्यों इंसान के धर्म का कोई नाम ना मिला

ग़म बस मन में एक यही है दोस्तों
इस जहाँ में एक कट्टर इंसान ना मिला 
इस जहाँ में एक कट्टर इंसान ना मिला 
       कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com




मुझे अपनाने कोई गैर आया है......



मैं तो वो पत्ता हू जिसे हवा ने भगाया है,
बस एक मज़ाक हू, जिसे जमाने ने उड़ाया है
गैरो से वास्ता मै कैसे रख सकू?
मैं वो शक्स हू ,जिसे अपनो ने रुलाया है


पानी ना देखिए, आप मेरी आँख मे,
छलक गये है आसू ,जब जब हसाया है


जमाने भर की ग़लतिया, जैसे मुझ से ही हुई
खुदा ने भी मुझे, इस तरह सताया है


पहचान है मेरी, फिर भी ये प्रश्न है
क्यू भीड़ मे खुद, को अंजान पाया है


जला कर मेरी चिता, जब अपने चल दिए
तब मुझे अपनाने, कोई गैर आया है


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


सोमवार, 18 जुलाई 2011

मुल्क पर हमले होते रहेंगे........

भारत देश मे आए दिन होते आतंकी हमलो पर कवि की कलम बोली:

मुल्क पर हमले होते रहेंगे........
लोग लाशो पर रोते रहेंगे
सिंदूर , राखी सब खाक मे मिलेंगे,
अगर देश के रखवाले सोते रहेंगे


रोज एक नया कसाब होगा,
रोज एक नया ताज होगा
जॅयैपर हो या दिल्ली हो, या मुंबई की चौखट हो
सारा इलाक़ा लहू से सॉफ होगा
बीज बबूल के बोते रहेंगे
देश के रखवाले सोते रहेंगे,
आशा नही पूरा यकीन है मुझे
मुल्क पर हमले होते रहेंगे


लो एक लाश और एक लाश
सुकून मिलता है उन्हे देख लाश पर लाश
इंसाफ़ मे कमी या इंसान मे कमी
मौसम ही एसा है या आँख मे नमी है,
हाथ पर है हाथ ,वक़्त खोते रहेंगे
देश के रखवाले सोते रहेंगे
आशा नही यकीन है"प्रभात"
मुल्क पर हमले होते रहेंगे


रोज होते रहेंगे, हर रोज होते रहेंगे
अगर देश के रखवाले सोते रहेंगे


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


नखरे वाली गोरी.........

थोड़ी देर मे रात हो जाएगी,
गम की मारी दुनिया सो जाएगी
वो मुझसे कहेगी खफा हू मैं
पर रोकर मेरे सपनो मे खो जाएगी......


ना इज़हार करती है
ना इनकार करती है,
मुझे यकीन है दिल से कहता हू
की वो मुझ ही से प्यार करती है,


आकर मुझे जुनून बाट दे,
मेरी भोले से दिल को सुकून बाट दे
मेरा नाम लिख के ना बहा लहु अपना
इतना शौक है तो दीवानो को अपना खून बाट दे.....
इतना शौक है तो दीवानो को अपना खून बाट दे........


रचियता : कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"

आज सब खो जाने दीजिए.........

मुझे पल्लू छू लेने दीजिए,
इस बहाने मुझे रो लेने दीजिए
मुझे पल्लू छू लेने दीजिए,
कुछ जख्म जमे है तलहट-ए-दिल पर
आज मुझे धो लेने दीजिए,


मर मर कर लाश सा चलता हू मैं
आज मुझे जी लेने दीजिए
जाम छूआ तो नाम शराबी रख दिया
बदनाम हुआ हू पी लेने दीजिए
आज मुझे जी लेने दीजिए.


कितना दीवाना था मैं आपका
ज़माने को दिख जाने दीजिए
बुलावा है सब पैसे वालो को,
आज मुझे बिक जाने दीजिए
ज़माने को दिख जाने दीजिए


क्या कमाया है मैने दुनिया मे?
आज सब खो जाने दीजिए
मौत मेरी है नींद आख़िरी,
अपनी गोदी मे सो जाने दीजिए
आज सब खो जाने दीजिए


आज सब खो जाने दीजिए
आज सब खो जाने दीजिए.........


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


रविवार, 10 जुलाई 2011

खुशी को गम है आज

इंसान होकर कुछ रहम तो कर जालिम,
मेरी नज़र से जमाने को नज़र कर जालिम
मुझसे ना सही तेरा गुरूर है तो,
खुदा ईश्वर अल्लाह से तो डर जालिम


कुछ जले थे चिराग कभी नूर के लिए,
खुद जले थे आप जिन हुज़ूर के लिए,
आज हमसफ़र है वो आप खुद ही देखिए,
जो चल पड़े थे साथ थोड़ी दूर के लिए


हालात ने विश्वास को हिला रखा है,
दोस्तो ने दुश्मन को मिला रखा है,
अभी ज़िंदा हू मैं ये गैर की दुआ है,
वरना अपनो ने तो मेरा कफ़न सिला रखा है

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"

आइनो मे मेरे नाम आए है

महफ़िल -ए- दिल मे गम के जाम आए है,
मैने छुए तक नही पीने के नाम आए है,
कुछ फूल बोए थे उसके तोहफे के लिए,
मेरी कब्र पर चढ़ाने के काम आए है,


नापाक साजिशे कुछ आपने करी,
और आइनो मे मेरे नाम आए है


बुझे बुझे है दिल सजी है महफिले,
सुना है उनके आने के पैगाम आए है,

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"