रातो को अक्सर सोचता हू, बालो को अक्सर नोचता हू
क्या नाम दू, क्या नाम दू, इस रिश्ते को मैं सोचता हू
ओ जाना हुई क्या खता , जरा हमें भी बता
ओ जाना हुई क्या खता जरा हमें भी बता
सब हार दू, सब हार दू,मै तेरे सदके वार दू
मुझे ऐसे ना सता, ओ जाना हुई क्या खता
चलता अक्सर सपनो में,ढूढू तुझको अपनों में
मेरी जान तू, पहचान तू,मेरा धर्म तू ईमान तू
चाँद पर्दा हटा,ओ जाना हुई क्या खता......
चंदा की चादनी तू,सूरज की रौशनी तू,
तू झरनों का पानी है, रागों की रागनी तू
तू दूर है है तू नूर है,दिलवालों में मशहूर है
कभी तो नजरे मिला, ओ जाना हुई क्या खता.
ओ जाना हुई क्या खता , जरा हमें भी बता
रातो को अक्सर सोचता हू, बालो को अक्सर नोचता हू
क्या नाम दू, क्या नाम दू, इस रिश्ते को मैं सोचता हू...........
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"