मेरी शराफत के चर्चे, ज़माना नहीं जानता
मैं इतना शरीफ हूँ, मैखाना नहीं जानता
दिल पर गुजरती है, तो लिख लेता हूँ हुजूर,
मैं गीत और ग़ज़ल का, पैमाना नहीं जानता .......
मुझसे कोई उम्मीद-ए-चापलूसी ना रखे,
मैं साफ़ कहता हूँ, बडबडाना नहीं जानता........
मेरी शोहरत मैंने नंगे पैरो से कमाई है
मैं बेवजह पैसा उड़ाना नहीं जानता .........
जब कह दिया परवाना तो क्यों हटू बोलो,
मैं मरने के डर से शंमा बुझाना नहीं जानता.......
दिल पर गुजरती है, तो लिख लेता हूँ हुजूर,
मैं गीत और ग़ज़ल का, पैमाना नहीं जानता ......
1 टिप्पणी:
Behtareen Sir .. Hamesha ki tarah.
Jai Hind
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