गुरुवार, 7 जून 2012

मुँह पे ताले पड़ते देखे है.....


मेहनतकश को दो रोटी के लाले पड़ते देखे है
बलिदानों के शिलालेख पर जाले पड़ते देखे है,
जब जब हमने खंगाले, कच्चे चिट्ठे सरकारों के,
सी एम् से पी एम् तक 
मुँह
पे ताले पड़ते देखे है...

कविता को  हथियार बना कर, गाना मैंने सीखा है,

नोक कलम की होती है,पर भाले पड़ते देखे है 

---------------------------------कवि  प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
 वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/

                      

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

hamre govt, es mudde per koe chacha nahi kar rahe hai