मंगलवार, 24 जुलाई 2012

अब अवतार लो गोविन्द.......

कृष्ण जन्माष्टमी के लिए विशेष रूप से लिखी रचना
(आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनाये)


अब अवतार लो गोविन्द, अब अवतार लो गोविन्द
भज स्वीकार लो गोविन्द, भज स्वीकार लो गोविन्द...........

झूठ कपट छल चोरी अब तो हो रही बीच बाज़ार

नंग खड़ा है मानव देखो करने को व्यापार

कर उद्धार दो गोविन्द , कर उद्धार दो गोविन्द

अब अवतार लो गोविन्द, अब अवतार लो गोविन्द...........

माखन रोता, मिश्री रोती , रोये कदम्ब की डाली

तज डाला है नाम हरी का, मुह पे रहती गाली

गीता सार दो गोविन्द, गीता सार दो गोविन्द

अब अवतार लो गोविन्द , अब अवतार लो गोविन्द...........

हम भी समझे, तुम भी समझे, समझे ये जग सारा
मिथ्या है माया में फंसना, हरि का नाम है प्यारा

भव से तार दो गोविन्द, भव से तार दो गोविन्द
अब अवतार लो गोविन्द, अब अवतार लो गोविन्द...........


---------------------------------कवि  प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"

वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/


गुरुवार, 19 जुलाई 2012

हमले होते रहेंगे.....


अक्सर लोग कहते है प्रभात जी आप अपनी लेखनी में इतना विकराल रूप कैसे रखते है?
अभी हाल में में प्रचलित मेरी कविता "हमले होते रहेंगे" पर भी लोगो ने इसी तरह की प्रतिक्रिया दी

मित्रो आप ही बताओ जब इस देश का पढ़ा युवा नौकरी के लिए भटके , आटा चीनी चावल तेल का भाव इतना की व्यक्ति उलझन में पड़ जाए की परचून की दूकान पर लेने जाए, या सुनार की।


और जनता की मेहनत के पैसे से विधायक अपनी गाडी में पेट्रोल भरवा कर काले शीशे चढ़ा कर इस तरह मुह फेर कर निकल जाए जैसे आम जनता अछूत हो।.


एक तरफ रोज 20 लाख लोग  भूखे पेट सोते हों  और दूसरी तरफ कसाब को बिरयानी और जेड प्लस सुरक्षा मुहैया करवाई जाए
क्या एक सच्चे देश प्रेमी का खून नहीं खौलेगा ?????


मेरी एक कविता की विडियो आपके हवाले करता हूँ,सिर्फ पांच मिनट मुझे मेरे शब्दों को मेरी कविता को दीजिये।


आप भी कहेंगे इन्कलाब जिंदाबाद 


http://www.youtube.com/watch?v=L6x-RfQcoJ8
---------------------------------कवि  प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
 वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
 

शनिवार, 14 जुलाई 2012

खूबसूरत है तू जिंदगी के लिए .......


खूबसूरत है तू जिंदगी के लिए , 
मौसम है हसीं आशिकी के लिए ...........

कांटे चुभते रहे, और मैं हँसता रहा ,
फूल चुनता रहा बंदगी के लिए...........

यूँ तो गुल से भरा था मेरा आशियाँ 

दिल मचलता रहा एक कली के लिए........

अश्को-गम का समन्दर ही जो दे सका,
मैं तड़पता रहा बस उसी लिए.............

इतने खाए है खंजर ज़माने से सुन
हाथ उठता नहीं दोस्ती के लिए ............

---------------------------------कवि  प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
 वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/