खूबसूरत है तू जिंदगी के लिए ,
मौसम है हसीं आशिकी के लिए ...........
कांटे चुभते रहे, और मैं हँसता रहा ,
फूल चुनता रहा बंदगी के लिए...........
यूँ तो गुल से भरा था मेरा आशियाँ
दिल मचलता रहा एक कली के लिए........
अश्को-गम का समन्दर ही जो दे सका,
मैं तड़पता रहा बस उसी लिए.............
इतने खाए है खंजर ज़माने से सुन
हाथ उठता नहीं दोस्ती के लिए ............
---------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
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1 टिप्पणी:
बहुत ही उम्दा .... !!!
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