शनिवार, 30 मार्च 2013

मीर और ग़ालिब का ज़माना नहीं रहा........


सच्चे प्यार का अब, फ़साना नहीं रहा,
शमा में जल गया, परवाना नहीं रहा
शायरी रूह तक पहुचे, तो कैसे पहुचे
अब मीर और ग़ालिब का, ज़माना नहीं रहा........

सियासत और हवस ने, पूरा शहर खोद डाला
अब ज़मीं के नीचे छिपा हुआ, खज़ाना नहीं रहा
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सच और नेकी की राह में, ये मोड़ भी आया
खाने को रोटी और रहने का, ठिकाना नहीं रहा
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इश्क उनसे हुआ तो, हम जीते जी मर गए,
अब मौत के आने का, बहाना नही रहा
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        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com


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